HI/661122 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हमें अपनी शिक्षा की प्रगति पर बहुत गर्व है। लेकिन यदि हम कुछ लोगों से पूछें कि वह स्वयं क्या है?, शायद ही कोई इसका उत्तर दे पाये। प्रत्येक व्यक्ति इस शारीरिक कल्पना से ही परिचित है। इस प्रश्न पर कईं बार, बल्कि बहुत बार विवेचना हो चुकी है। यह परीक्षा पास कर लेने के बाद कि मैं यह शरीर नहीं हूँ तभी वास्त्विक ज्ञान की ओर बढ़ पाता है। मैं क्या हूँ? यह ज्ञात करना ही वास्तविक ज्ञान है, और यह शुरूआत है। श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि यह राजविद्या है। राजविद्या का अर्थ है, स्वयं का ज्ञान प्राप्त करना। वह स्वयं क्या, कौन है और फिर उस पर आधारित कर्म करना। इसे राजविद्या कहते हैं।"
661122 - Lecture BG 09.02 - New York