HI/661126 - सुमति मोरारजी को लिखित पत्र, न्यू यॉर्क: Difference between revisions

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शिविर: २६ द्वितीय एवेन्यू कोष्ठ ३ १आर<br/>
शिविर: २६ द्वितीय मार्ग कोष्ठ ३ १आर<br/>
न्यूयॉर्क एनवाई १०००२३ यू.एस.ए. <br/>
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२२ वें पल के आपके पत्र के लिए मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं और विषय सूची को लिख लिया है।
२२ वें पल के आपके पत्र के लिए मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं और विषय सूची को लिख लिया है।


मैं बंबई में अपने बुकसेलरों को पत्र की एक प्रति के साथ संलग्न कर रहा हूं। कृपया उनके साथ संपर्क में रहें और दो सेट (तीन मात्रा प्रत्येक) श्रीमद्भागवतम् का वितरण करें।
मैं बंबई में अपने पुस्तक विक्रेताओं को पत्र की एक प्रति के साथ संलग्न कर रहा हूं। कृपया उनके साथ संपर्क में रहें और दो सेट (तीन मात्रा प्रत्येक) श्रीमद्भागवतम् का सामनलेना करें।


मेरी पुस्तकों के मुद्रण के बारे में आपकी जाँच के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि भारत से अनुपस्थित रहने के कारण प्रकाशन कार्य अब निलंबित है। <u>किताबें पांडुलिपि प्रकाशन के लिए तैयार हैं</u>। मैं छोटी-छोटी रकम इकट्ठा करके उन्हें बड़ी मुश्किल से मुद्रण कर रहा था और मेरी अनुपस्थिति के कारण वे प्रकाशित नहीं हो रहे हैं। यदि आपका अच्छा स्वयं या कोई अन्य इस संबंध में सहयोग के लिए आगे आते है, तो प्रकाशन कार्य को तुरंत पुनर्जीवित किया जा सकता है। इस बीच मैंने भक्ति सिद्धांत पर विशुद्ध रूप से भगवद् गीता पर एक टिप्पणी भी तैयार की है और जब यह प्रकाशित होगी तो यह भगवद गीता का एक अनूठा प्रकाशन होगा। अब तक जितनी भी टीकाएँ भगवद्गीता पर डॉ. राधाकृष्ण या अन्य लोगों की हैं, उनका भक्ति पंथ में कोई ज्ञान नहीं है। इसलिए भगवद् गीता पर इस तरह की टिप्पणी अधिकृत नहीं है। <u>"भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम्"</u> भगवान के भक्त हुए बिना भगवद्गीता किसी की भी पहुँच में नहीं है। लेकिन अब बाजार में उपलब्ध अंग्रेजी में सभी टिप्पणियां गैर भक्त मानसिक कहानियो द्वारा की जाती हैं। जैसे कि मेरी भगवद गीता प्रकाशित होने पर एक अनूठी प्रस्तुति होगी। यदि आप इस संबंध में सहयोग करते हैं तो मुझे बहुत खुशी होगी।
मेरी पुस्तकों के मुद्रण के बारे में आपकी जाँच के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि भारत से अनुपस्थित रहने के कारण प्रकाशन कार्य अब निलंबित है। <u>किताबें पांडुलिपि छपाई के लिए तैयार हैं</u>। मैं छोटी-छोटी रकम इकट्ठा करके उन्हें बड़ी मुश्किल से छाप रहा था, और मेरी अनुपस्थिति के कारण छपाई नहीं हो रही हैं। यदि आपका अच्छाई से या कोई अन्य इस संबंध में सहयोग के लिए आगे आते है, तो प्रकाशन कार्य को तुरंत पुनर्जीवित किया जा सकता है। इस बीच मैंने भक्ति सिद्धांत पर विशुद्ध रूप से भगवद् गीता पर एक टिप्पणी भी तैयार की है, और जब यह प्रकाशित होगी तो यह भगवद गीता यथारूप का एक अनूठा प्रकाशन होगा। अब तक जितनी भी टीकाएँ भगवद्गीता पर डॉ. राधाकृष्ण या अन्य लोगों की हैं, उनका भक्ति पंथ में कोई ज्ञान नहीं है। इसलिए भगवद् गीता पर इस तरह की टिप्पणी अधिकृत नहीं है। <u>"भक्त असि प्रिय असि में रहस्य हि एतद उतमम्"</u> भगवान के भक्त हुए बिना भगवद्गीता किसी की भी पहुँच में नहीं है। लेकिन अब बाजार में उपलब्ध अंग्रेजी में सभी टिप्पणियां मानसिक सट्टा लगाने वाले अभक्तों द्वारा की जाती हैं। जैसे कि मेरी भगवद गीता प्रकाशित होने पर एक अनूठी प्रस्तुति होगी। यदि आप इस संबंध में सहयोग करते हैं तो मुझे बहुत खुशी होगी।


मुझे अभी तक अपने पत्र के उत्तर की तारीख १३ वां इंस्टेंट नहीं मिला है और मुझे उम्मीद है कि यह जल्द ही प्राप्त होगा।
मुझे अभी तक अपने पत्र के उत्तर की तारीख १३ वां तत्क्षण नहीं मिला है और मुझे उम्मीद है कि यह जल्द ही प्राप्त होगा।


मैं आपके अच्छे आत्म को श्रीमति राधारानी भगवान कृष्ण के सबसे प्रिय संघ में से एक के रूप में मानता हूं। तो पश्चिमी देशों में मेरे मिशन की सफलता के लिए भगवान कृष्ण से आपकी प्रार्थना निश्चित रूप से सुनी जाएगी। लेकिन साथ ही मैं भारत में कृष्ण के सभी भक्तों से विशेष रूप से इस शक्तिशाली प्रगति में बंबई में पूर्ण सहयोग की अपेक्षा करता हूं। मैं अमेरिकी युवाओं को भक्ति सेवा की पंक्ति में प्रशिक्षित करना चाहता हूं और उन्हें दुनिया के इस हिस्से के विभिन्न हिस्सों में श्री श्री राधा कृष्ण के मंदिरों को सौंपना चाहता हूं।  मेरी शुभकामनाओं के साथ, मैं विनती करता हूँ।
मैं आपको, श्रीमति राधारानी, भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय संगिनी, के सहयोगियों में से एक के रूप में मानता हूं। तो पश्चिमी देशों में मेरे मिशन की सफलता के लिए, भगवान कृष्ण से आपकी प्रार्थना निश्चित रूप से सुनी जाएगी। लेकिन साथ ही मैं भारत, बंबई में, कृष्ण के सभी भक्तों से विशेष रूप से इस शक्तिशाली प्रगति में पूर्ण सहयोग की अपेक्षा करता हूं। मैं अमेरिकी युवाओं को भक्ति सेवा की मार्ग में प्रशिक्षित करना चाहता हूं, और उन्हें दुनिया के इस हिस्से के विभिन्न हिस्सों में श्री श्री राधा कृष्ण के मंदिरों को सौंपना चाहता हूं।  मेरी शुभकामनाओं के साथ, मैं विनती करता हूँ।


सादर,
सादर,

Latest revision as of 07:23, 6 April 2021

सुमति मोरारजी को पत्र (पृष्ठ १ से २)


शिविर: २६ द्वितीय मार्ग कोष्ठ ३ १आर
न्यूयॉर्क एनवाई १०००२३ यू.एस.ए.



न्यू यॉर्क नवंबर २६,                     ६६


मैडम सुमति मोरारजी बाईसाहेबा,
२२ वें पल के आपके पत्र के लिए मैं आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देता हूं और विषय सूची को लिख लिया है।

मैं बंबई में अपने पुस्तक विक्रेताओं को पत्र की एक प्रति के साथ संलग्न कर रहा हूं। कृपया उनके साथ संपर्क में रहें और दो सेट (तीन मात्रा प्रत्येक) श्रीमद्भागवतम् का सामनलेना करें।

मेरी पुस्तकों के मुद्रण के बारे में आपकी जाँच के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं आपको सूचित करना चाहता हूं कि भारत से अनुपस्थित रहने के कारण प्रकाशन कार्य अब निलंबित है। किताबें पांडुलिपि छपाई के लिए तैयार हैं। मैं छोटी-छोटी रकम इकट्ठा करके उन्हें बड़ी मुश्किल से छाप रहा था, और मेरी अनुपस्थिति के कारण छपाई नहीं हो रही हैं। यदि आपका अच्छाई से या कोई अन्य इस संबंध में सहयोग के लिए आगे आते है, तो प्रकाशन कार्य को तुरंत पुनर्जीवित किया जा सकता है। इस बीच मैंने भक्ति सिद्धांत पर विशुद्ध रूप से भगवद् गीता पर एक टिप्पणी भी तैयार की है, और जब यह प्रकाशित होगी तो यह भगवद गीता यथारूप का एक अनूठा प्रकाशन होगा। अब तक जितनी भी टीकाएँ भगवद्गीता पर डॉ. राधाकृष्ण या अन्य लोगों की हैं, उनका भक्ति पंथ में कोई ज्ञान नहीं है। इसलिए भगवद् गीता पर इस तरह की टिप्पणी अधिकृत नहीं है। "भक्त असि प्रिय असि में रहस्य हि एतद उतमम्" भगवान के भक्त हुए बिना भगवद्गीता किसी की भी पहुँच में नहीं है। लेकिन अब बाजार में उपलब्ध अंग्रेजी में सभी टिप्पणियां मानसिक सट्टा लगाने वाले अभक्तों द्वारा की जाती हैं। जैसे कि मेरी भगवद गीता प्रकाशित होने पर एक अनूठी प्रस्तुति होगी। यदि आप इस संबंध में सहयोग करते हैं तो मुझे बहुत खुशी होगी।

मुझे अभी तक अपने पत्र के उत्तर की तारीख १३ वां तत्क्षण नहीं मिला है और मुझे उम्मीद है कि यह जल्द ही प्राप्त होगा।

मैं आपको, श्रीमति राधारानी, भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय संगिनी, के सहयोगियों में से एक के रूप में मानता हूं। तो पश्चिमी देशों में मेरे मिशन की सफलता के लिए, भगवान कृष्ण से आपकी प्रार्थना निश्चित रूप से सुनी जाएगी। लेकिन साथ ही मैं भारत, बंबई में, कृष्ण के सभी भक्तों से विशेष रूप से इस शक्तिशाली प्रगति में पूर्ण सहयोग की अपेक्षा करता हूं। मैं अमेरिकी युवाओं को भक्ति सेवा की मार्ग में प्रशिक्षित करना चाहता हूं, और उन्हें दुनिया के इस हिस्से के विभिन्न हिस्सों में श्री श्री राधा कृष्ण के मंदिरों को सौंपना चाहता हूं। मेरी शुभकामनाओं के साथ, मैं विनती करता हूँ।

सादर,

श्रीमती सुमति मोरारजी सिंधिया हाउस, बॉम्बे.