HI/661130 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 04:07, 22 March 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"भक्ति द्वारा व्यक्ति को यह इच्छा नहीं रखनी चाहिए कि, 'मेरे भौतिक दुःख की स्थिति में सुधार आ जायेगा' या 'शायद मैं भी इस भौतिक बंधन से मुक्त हो जाऊँगा'। क्यूँकि वह भी एक प्रकार से इन्द्रियतृप्ति के समान ही है। यदि मैं इस बंधंन से ही मुक्त होना चाहता हूँ... 'जिस प्रकार से योगी या ज्ञानी करने का प्रयास करते हैं'। वे भी इस भौतिक बंधंन से मुक्त होना चाहते हैं। किन्तु भक्ति योग में ऐसी कोई इच्छा नहीं रहती, क्योंकि वह शुद्ध प्रेम है। वहाँ किसी भी लाभ की इच्छा नहीं होती। नहीं। यह कोई लाभ प्राप्त करने का व्यवसाय नहीं है, कि 'जब तक मुझे बदले में कुछ नहीं प्राप्त होता, मैं कृष्ण भावनामृत में भक्ति नहीं करूँगा।' भक्ति में लाभ का कोई प्रश्न नहीं होता है।" |
661130 - प्रवचन चै.च. मध्य २०.१४२ - न्यूयार्क |