HI/661201 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवान् के समान कोई नहीं हो सकता। इसलिए भगवान् बनने या अपनी निम्न बुद्धि और दोषयुक्त इन्द्रियों से भगवान् को समझने के स्थान पर विनम्र बनना श्रेयस्कर है। जनाने प्रयासं (श्री.भा. १०.१४.३) यह मूर्खों वाली आदत को त्याग दो कि मैं भगवान् को जान सकता हूँ। बस केवल विनम्र होकर उनके प्रतिनिधियों से सुनो। सनमुखरीतां। लेकिन प्रतिकौन है? स्वयं भगवान् कृष्ण, या उनके प्रतिनिधी हैं।"
661201 - Lecture BG 09.15 - New York