HI/661217 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/661217CC-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>| "जहाँ तक इस भौतिक प्रकृति की रचना का संबंध है, यह कहा गया है कि "भगवान् की भौतिक शक्ति के द्वारा ही इस भौतिक जगत और अनेक ब्रह्माण्ड प्रकट हुए हैं।" अत: किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि भौतिक जगत् स्वयं से प्रकट हुआ, अथवा शून्य से। नहीं, वैदिक शास्त्रों और विशेषकर ब्रह्म संहिता में इसकी पुष्टि हुई है, और भगवद्गीता में भी बताया है, "मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम्" (भ.गी. ९.१०)। अत: भौतिक प्रकृति स्वतंत्र नहीं है। यह हमारा भृम है, एक ग़लत धारणा है कि,प्रकृति स्वत: ही कार्य करती है। तत्व(पदार्थ) में कार्य करने की अपनी कोई क्षमता नहीं है। यह जड़ रूप है। जड़ रूप का अर्थ है कि इसमें स्वयं में कार्य करने की कोई क्षमता नहीं है। पदार्थ में कोई शक्ति नहीं है। इसलिए परम पुरुषोत्तम भगवान् के निर्देशन के बिना पदार्थ स्वयं से प्रकट नहीं कर सकता।" |Vanisource:661217 - Lecture CC Madhya 20.255-281 - New York|661217 - प्रवचन चै.च. मध्य २०.२५५-२८१ - न्यूयार्क}} |
Latest revision as of 04:32, 2 April 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"जहाँ तक इस भौतिक प्रकृति की रचना का संबंध है, यह कहा गया है कि "भगवान् की भौतिक शक्ति के द्वारा ही इस भौतिक जगत और अनेक ब्रह्माण्ड प्रकट हुए हैं।" अत: किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि भौतिक जगत् स्वयं से प्रकट हुआ, अथवा शून्य से। नहीं, वैदिक शास्त्रों और विशेषकर ब्रह्म संहिता में इसकी पुष्टि हुई है, और भगवद्गीता में भी बताया है, "मयाध्यक्षेण प्रकृति: सूयते सचराचरम्" (भ.गी. ९.१०)। अत: भौतिक प्रकृति स्वतंत्र नहीं है। यह हमारा भृम है, एक ग़लत धारणा है कि,प्रकृति स्वत: ही कार्य करती है। तत्व(पदार्थ) में कार्य करने की अपनी कोई क्षमता नहीं है। यह जड़ रूप है। जड़ रूप का अर्थ है कि इसमें स्वयं में कार्य करने की कोई क्षमता नहीं है। पदार्थ में कोई शक्ति नहीं है। इसलिए परम पुरुषोत्तम भगवान् के निर्देशन के बिना पदार्थ स्वयं से प्रकट नहीं कर सकता।" |
661217 - प्रवचन चै.च. मध्य २०.२५५-२८१ - न्यूयार्क |