HI/661218 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|Nectar Drops from Srila Prabhupada|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/661218CC-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"ब्रह्मा जी के एक दिवस का अर्थ ,३००,००० X १००० है। यह ब्रह्मा जी के बारह घंटे हैं। उसी प्रकार चौबीस घंटे का एक दिन। अभी यदि हम एक मास, एक वर्ष की गणना करें तो एक वर्ष कितना होगा। इस प्रकार सौ वर्ष की गणना की अवधि कितनी हो जाये गी। अत: ब्रह्मा जी के सौ वर्ष महाविष्णु जी के एक स्वाँस की अवधि है। जिस प्रकार हमारा स्वाँस लेना छोड़ना चलता रहता है। स्वाँस लेने की अवधि, जब स्वाँस बाहर छोड़ते हैं तो सभी ब्रह्मांडों की रचना होती है और जब स्वाँस को छोड़ते हैं तो सभी लुप्त अथवा महाविष्णु में समा जाते हैं, इस प्रकार यह चलता रहता है। और महाविष्णु भगवान् श्री कृष्ण का चौथे विस्तारण हैं।"|Vanisource:661218 - Lecture CC Madhya 20.281-293 - New York|661218 - Lecture CC Madhya 20.281-293 - New York}}
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/661218CC-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>| "ब्रह्माजी के एक दिवस का अर्थ ४३,००,००० x १००० है। यह ब्रह्माजी के बारह घंटे हैं। उसी प्रकार चौबीस घंटे का एक दिन। अब गणना करें ऐसे एक मास, ऐसे एक वर्ष की। इस प्रकार के ब्रह्माजी के सौ वर्ष महाविष्णु के केवल एक साँस की अवधि है, जिस प्रकार से हमारा साँस लेना और छोड़ना चलता रहता है। साँस लेने की अवधि के दौरान, जब साँस बाहर छोड़ते हैं तो सभी ब्रह्मांडों की रचना होती है और जब साँस को अंदर लेते हैं, तो सभी लुप्त अथवा महाविष्णु में समा जाते हैं। इस प्रकार यह चलता रहता है। और ऐसे महाविष्णु भगवान् श्री कृष्ण का चौथे विस्तरण हैं।" |Vanisource:661218 - Lecture CC Madhya 20.281-293 - New York|661218 - प्रवचन चै.च. मध्य २०.२८१-२९३ - न्यूयार्क}}

Latest revision as of 05:28, 7 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"ब्रह्माजी के एक दिवस का अर्थ ४३,००,००० x १००० है। यह ब्रह्माजी के बारह घंटे हैं। उसी प्रकार चौबीस घंटे का एक दिन। अब गणना करें ऐसे एक मास, ऐसे एक वर्ष की। इस प्रकार के ब्रह्माजी के सौ वर्ष महाविष्णु के केवल एक साँस की अवधि है, जिस प्रकार से हमारा साँस लेना और छोड़ना चलता रहता है। साँस लेने की अवधि के दौरान, जब साँस बाहर छोड़ते हैं तो सभी ब्रह्मांडों की रचना होती है और जब साँस को अंदर लेते हैं, तो सभी लुप्त अथवा महाविष्णु में समा जाते हैं। इस प्रकार यह चलता रहता है। और ऐसे महाविष्णु भगवान् श्री कृष्ण का चौथे विस्तरण हैं।"
661218 - प्रवचन चै.च. मध्य २०.२८१-२९३ - न्यूयार्क