"कल्पना करो कि जीवन की शुरूवाद से ही मेरा चरित्र दोषपूर्ण है, परन्तु अब मुझे ज्ञात हो गया है कि कृष्ण भावना बहुत अच्छा है और इसे मुझे अपनाना चाहिए। मैं इसे अपनाने का प्रयास कर रहा हूँ, और पूर्ण लग्न से प्रयास कर रहा हूँ। परन्तु चूँकि इन आदतों का मैं इतना आदि हो चुका हूँ कि मैं उन्हें नहीं छोड़ पा रहा हूँ। हाँलाकि मैं जानता हूँ कि मेरी यह आदत अच्छी नहीं है लेकिन यह मेरा स्वभाव बन चुकी है। मैं इसे छोड़ नहीं सकता। अत: भगवान् श्री कृष्ण अनुरोध करते हैं कि" वह फिर भी अच्छा है। ऐसा प्रश्न ही नहीं उठता कि वह साधु नहीं है, ईमानदार नहीं है, वह धार्मिक व्यक्ति नहीं है। यही एक गुण कि वह कृष्ण भावना भावित है और निष्ठा से कर्म करने का प्रयास करता है परन्तु कभी-कभी गिर जाता है, लेकिन तब भी उसे साधु ही मानें गे। धार्मिक, ईमानदार व पवित्र होना ही साधु होना है।"
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