HI/670207b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९६७ Category:HI/अम...") |
No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६७]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९६७]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - सैन फ्रांसिस्को]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - सैन फ्रांसिस्को]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670207CC-SAN_FRANCISCO_ND_02.mp3</mp3player>|"जैसे ही कोई किसी सन्यासी का दर्शन करता है उसे तुरंत ही उनको सम्मान | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/670207 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|670207|HI/670208 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|670208}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670207CC-SAN_FRANCISCO_ND_02.mp3</mp3player>|"जैसे ही कोई किसी सन्यासी का दर्शन करता है, उसे तुरंत ही उनको सम्मान प्रकट करना चाहिए। यदि वह सम्मान प्रकट नहीं करता है तो दंड स्वरुप उसे एक दिन का उपवास करना चाहिए। उसे भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। "अरे, मैंने एक सन्यासी को देखा, किन्तु मैंने अपना सम्मान नहीं दिया। इसलिए तपस्या स्वरुप यह उचित है कि, मुझे एक दिन उपवास करना चाहिए।" यह निषेधाज्ञा है। तो चैतन्य महाप्रभु, हालांकि वे स्वयं भगवान थे, किन्तु उनका व्यवहार और उनका शिष्टाचार उत्कृष्ट था। जैसे ही उन्होंने संन्यासियों को देखा, तो उन्होंने तुरंत ही उनका सम्मान किया। पाद प्रक्षालन करी वशीला सेइ स्थाने (चै.च. आदि लीला ७.५९)। और यह प्रणाली है कि, जब कोई बाहर से आता है, तो उसे कमरे में प्रवेश करने से पूर्व अपने पैरों को धोना पड़ता है, विशेष रूप से एक सन्यासी के लिए। तो वे अपने पैरो को धोकर बाहर बैठ गए। वहीँ जहाँ दूसरे सन्यासी बैठे थे, थोड़ी दूरी पर, बस वहीँ जगह जहाँ उन्होंने अपने पैर धोए थे।" |Vanisource:670207 - Lecture CC Adi 07.49-65 - San Francisco|670207 - प्रवचन चै. च. अदि लीला ७.४९-६५ - सैन फ्रांसिस्को}} |
Latest revision as of 09:16, 24 April 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"जैसे ही कोई किसी सन्यासी का दर्शन करता है, उसे तुरंत ही उनको सम्मान प्रकट करना चाहिए। यदि वह सम्मान प्रकट नहीं करता है तो दंड स्वरुप उसे एक दिन का उपवास करना चाहिए। उसे भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए। "अरे, मैंने एक सन्यासी को देखा, किन्तु मैंने अपना सम्मान नहीं दिया। इसलिए तपस्या स्वरुप यह उचित है कि, मुझे एक दिन उपवास करना चाहिए।" यह निषेधाज्ञा है। तो चैतन्य महाप्रभु, हालांकि वे स्वयं भगवान थे, किन्तु उनका व्यवहार और उनका शिष्टाचार उत्कृष्ट था। जैसे ही उन्होंने संन्यासियों को देखा, तो उन्होंने तुरंत ही उनका सम्मान किया। पाद प्रक्षालन करी वशीला सेइ स्थाने (चै.च. आदि लीला ७.५९)। और यह प्रणाली है कि, जब कोई बाहर से आता है, तो उसे कमरे में प्रवेश करने से पूर्व अपने पैरों को धोना पड़ता है, विशेष रूप से एक सन्यासी के लिए। तो वे अपने पैरो को धोकर बाहर बैठ गए। वहीँ जहाँ दूसरे सन्यासी बैठे थे, थोड़ी दूरी पर, बस वहीँ जगह जहाँ उन्होंने अपने पैर धोए थे।" |
670207 - प्रवचन चै. च. अदि लीला ७.४९-६५ - सैन फ्रांसिस्को |