HI/670303 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670303SB-SAN_FRANCISCO_ND_01.mp3</mp3player>|भागवत-धर्म का अर्थ है, परमेश्वर भगवान के साथ व्यवहार। कई तरह के व्यवहार होते हैं। जब यह व्यवहार परमेश्वर भगवान के साथ होता है तब वह भागवत-धर्म कहलाता है। भागवत का अर्थ भगवान शब्द से ली गई है। भगवान यानि वह व्यक्ति जो षड्ऐश्र्वर्यो से परिपूर्ण है। उसे भगवान कहा जाता है, या ईश्वर। इस विश्व के अधिकांश शास्त्रों में ईश्वर के विषय में कुछ कल्पनाएँ तो है लेकिन वास्तव में भगवान की कोई परिभाषा नहीं है। लेकिन श्रीमद-भागवतम में, चूंकि यह भगवद्विद्या है, परिभाषा दी गयी है, ईश्वर का क्या तात्पर्य है। परिभाषा यह है की जो व्यक्ति षड्ऐश्र्वर्यो से परिपूर्ण है, वह ईश्वर है।|Vanisource:670303 - Lecture SB 07.06.01 - San Francisco|६७०३०३ - प्रवचन श्री भा ०७.०६.०१ - सैन फ्रांसिस्को}}
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Latest revision as of 16:49, 14 April 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भागवत-धर्म का अर्थ है, परम पुरुषोत्तम भगवान के साथ व्यवहार। अनेक प्रकार के व्यवहार होते हैं। जब यह व्यवहार परम पुरुषोत्तम भगवान के साथ होते हैं तब उन्हें भागवत-धर्म कहा जाता है। भागवत का अर्थ भगवान शब्द से लिया गया है। भगवान का अर्थ, वह व्यक्ति जो षड्ऐश्र्वर्यो से परिपूर्ण है। उन्हें भगवान कहा जाता है, या परमेश्वर। इस विश्व के अधिकांश शास्त्रों में परमेश्वर के विषय में कुछ कल्पनाएँ तो है किन्तु वास्तव में भगवान की कोई परिभाषा नहीं है। किन्तु श्रीमद-भागवतम में, चूंकि यह भगवद्विद्या है, परिभाषा दी गयी है, परमेश्वर का क्या तात्पर्य है। परिभाषा यह है कि जो व्यक्ति षड्ऐश्र्वर्यो से परिपूर्ण है, वह परमेश्वर है।"
670303 - प्रवचन श्री भा ०७.०६.०१ - सैन फ्रांसिस्को