HI/670317 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 06:57, 1 May 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यदि कोई अपनी भक्तिपूर्ण सेवा कृष्ण भावनामृत होकर, तथा प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरु के मार्गदर्शन में रहकर करता है, तो धीरे-धीरे वह रति बन जाता है। "रति का अर्थ है, प्रभु के प्रति स्नेह, आत्मीयता, आसक्ति।" अब हम इस बात के लिए आसक्त हो गए हैं। हम प्रगति करते हैं, हम धीरे-धीरे भौतिक आसक्ति से मुक्त हो जाते हैं और उस स्तर पर आते हैं, जहाँ हम भगवान के प्रति पूर्ण आसक्त हो जातें हैं। अतः आसक्ति एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है। मैं आसक्ति से मुक्त नहीं हो सकता। मैं या तो इस भौतिक स्तर से जुड़ा रहूंगा या आत्मा से जुड़ा रहूँगा। यदि मैं आत्मा से नहीं जुड़ता हूँ, तो मुझे भौतिक स्तर से जुड़ा हुआ होना चाहिए। और यदि मैं आत्मा से जुड़ता हूँ, तो मेरी भौतिक आसक्ति चली जाएगी। यह ही प्रक्रिया है।" |
670317 - प्रवचन स.बी. ०७.०७. ३२-३५ - सैन फ्रांसिस्को |