HI/670322b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670322SB-SAN_FRANCISCO_ND_02.mp3</mp3player>|अग्नि को एक स्थान पर रखा गया है, परन्तु यह अलग ढंग से प्रकट हो रही है। यह रोशन कर रही है, यह एक स्थान से अपनी ऊष्मा वितरित कर रही है । इसी तरह, परमेश्वर भगवान, वह दूर, बहुत दूर हो सकते हैं । पर वह बहुत दूर नहीं भी है, क्योंकि वे अपनी शक्ति से मौजूद है। बिल्कुल धूप की तरह। सूर्य हमसे बहुत दूर है, लेकिन वह अपने चमक से हमारे समक्ष उपस्थित है। हम समझ सकते हैं कि सूर्य क्या है। इसी तरह, यदि आप परमेश्वर भगवान की शक्तियों का अध्ययन करते हैं, तो आप चेतना में हैं, अर्थात कृष्ण चेतना में हैं । तो अगर आप अपने आप को कृष्ण की शक्ति में संलग्न करते हैं, तो आप कृष्ण भावनामृत हो जाते हैं। और जैसे ही आप कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं, आप पृथक नहीं रहते । आप उनसे पृथक नहीं रहते हैं।|Vanisource:670322 - Lecture SB 07.07.46 - San Francisco|670322 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०७.४६ - सैन फ्रांसिस्को}}
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Latest revision as of 06:43, 5 May 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"अग्नि को एक स्थान पर रखा गया है, परन्तु यह अलग प्रकार से प्रकट हो रही है। यह रोशनी कर रही है, यह एक स्थान से अपनी ऊष्मा वितरित कर रही है। उसी प्रकार, परम पुरुषोत्तम भगवान, वे दूर, बहुत दूर हो सकते हैं। परन्तु वे दूर नहीं भी है, क्योंकि वे अपनी शक्ति से उपस्थित हैं। धूप की भांति। सूर्य हमसे बहुत दूर है, किन्तु वह अपनी रोशनी से हमारे समक्ष उपस्थित है। हम समझ सकते हैं कि सूर्य क्या है। उसी प्रकार, यदि आप परम पुरुषोत्तम भगवान की शक्तियों का अध्ययन करते हैं, तो आप चेतना में हैं, अर्थात कृष्ण भावनामृत में हैं। तो यदि आप स्वयं को कृष्ण की शक्ति में संलग्न करते हैं, तो आप कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं। और जैसे ही आप कृष्ण भावनाभावित हो जाते हैं, आप अलग नहीं रहते। आप कृष्ण से अलग नहीं रहते हैं।"
670322 - प्रवचन श्री. भा. ०७.०७.४६ - सैन फ्रांसिस्को