HI/670327 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670327SB-SAN_FRANCISCO_ND_01.mp3</mp3player>|अगर हम मनोयोग पूर्वक सुनें, तो ध्यान अवश्य होगा। और पूजा। पजा का अर्थ है आराधना। इस युग में पूजा की सरल प्रक्रिया यही है जैसा कि हम कर रहे हैं — जप, श्रवण, और कुछ फल, फूल, और इस दिये को दिखाना। यह सरल है, बस इतना ही। वहाँ हैं ... वैदिक साहित्य के अनुसार पूजा करने के लिए कई सामग्री ..., चौंसठ वस्तु हैं। इस युग में यह संभव नहीं है। तो यह सब ठीक है। तो यह प्रक्रिया आपको निरपेक्ष सत्य को समझाएगी। आप बस किसी भी अन्य विषय पर अपना ध्यान आकर्षित किए बिना, एक ध्यान के साथ, इस सिद्धांत एकेना मनसा का पालन करें। यदि आप एकेना मनसा इस सिद्धांत का पालन करते हैं, सुनना, जप करना, विचार करना और पूजा करना ... यह सरल प्रक्रिया है। यह श्रीमद-भागवतम का आदेश है।|Vanisource:670327 - Lecture SB 01.02.14-16 - San Francisco|670327 - प्रवचन स.ब ०१. ०२. १४-१६ - सैन फ्रांसिस्को}}
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{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/670326 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|670326|HI/670327b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|670327b}}
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/670327SB-SAN_FRANCISCO_ND_02.mp3</mp3player>|“हमारे आज के कर्म आगे की एक और नई तस्वीर बना रहे हैं। जिस प्रकार हमारे भूतकाल के कर्मों से हमनें इस शरीर का सृजन किया। उसी प्रकार अपने वर्तमान कर्म से भी हम अपने अगले शरीर का सृजन कर रहे हैं। तो यह आत्मा का आवागमन चल रहा है। परन्तु यदि हम इस कृष्ण भावना की विधि को स्वीकार करेंगे, तब कर्म -ग्रन्थि -निबन्धनम छिन्दन्ति . यह ग्रंथि, एक के बाद दूसरी, यह कट जाएगी। तो यदि यह (कृष्ण भावना विधि ) इतनी अच्छी है...भागवत कहती है यद -अनुद्यासीना। सरलता से इस विधि का पालन करने से, यद -अनुद्यासीना युक्ताः केवल संलग्न रहने से कर्म-बंध-निबन्धनम;, हमारे कर्मफलों की श्रंखला एक के बाद दूसरी, छिन्दन्ति, वह कट जाती है। कोविदः, यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति है, तस्य को न कुर्यात कथा-रातिम। बुद्धिमान व्यक्ति को स्वयं को कृष्ण के विषयों के बारे में श्रवण करने में क्यों नहीं लगाना चाहिए? क्या इसमें कोई कठिनाई है?” |Vanisource:670327 - Lecture SB 01.02.14-16 - San Francisco|670327 - प्रवचन स.ब ०१. ०२. १४-१६ - सैन फ्रांसिस्को}}

Latest revision as of 04:40, 6 May 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
“हमारे आज के कर्म आगे की एक और नई तस्वीर बना रहे हैं। जिस प्रकार हमारे भूतकाल के कर्मों से हमनें इस शरीर का सृजन किया। उसी प्रकार अपने वर्तमान कर्म से भी हम अपने अगले शरीर का सृजन कर रहे हैं। तो यह आत्मा का आवागमन चल रहा है। परन्तु यदि हम इस कृष्ण भावना की विधि को स्वीकार करेंगे, तब कर्म -ग्रन्थि -निबन्धनम छिन्दन्ति . यह ग्रंथि, एक के बाद दूसरी, यह कट जाएगी। तो यदि यह (कृष्ण भावना विधि ) इतनी अच्छी है...भागवत कहती है यद -अनुद्यासीना। सरलता से इस विधि का पालन करने से, यद -अनुद्यासीना युक्ताः केवल संलग्न रहने से कर्म-बंध-निबन्धनम;, हमारे कर्मफलों की श्रंखला एक के बाद दूसरी, छिन्दन्ति, वह कट जाती है। कोविदः, यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति है, तस्य को न कुर्यात कथा-रातिम। बुद्धिमान व्यक्ति को स्वयं को कृष्ण के विषयों के बारे में श्रवण करने में क्यों नहीं लगाना चाहिए? क्या इसमें कोई कठिनाई है?”
670327 - प्रवचन स.ब ०१. ०२. १४-१६ - सैन फ्रांसिस्को