HI/670327 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
“हमारे आज के कर्म आगे की एक और नई तस्वीर बना रहे हैं। जिस प्रकार हमारे भूतकाल के कर्मों से हमनें इस शरीर का सृजन किया। उसी प्रकार अपने वर्तमान कर्म से भी हम अपने अगले शरीर का सृजन कर रहे हैं। तो यह आत्मा का आवागमन चल रहा है। परन्तु यदि हम इस कृष्ण भावना की विधि को स्वीकार करेंगे, तब कर्म -ग्रन्थि -निबन्धनम छिन्दन्ति . यह ग्रंथि, एक के बाद दूसरी, यह कट जाएगी। तो यदि यह (कृष्ण भावना विधि ) इतनी अच्छी है...भागवत कहती है यद -अनुद्यासीना। सरलता से इस विधि का पालन करने से, यद -अनुद्यासीना युक्ताः केवल संलग्न रहने से कर्म-बंध-निबन्धनम;, हमारे कर्मफलों की श्रंखला एक के बाद दूसरी, छिन्दन्ति, वह कट जाती है। कोविदः, यदि कोई बुद्धिमान व्यक्ति है, तस्य को न कुर्यात कथा-रातिम। बुद्धिमान व्यक्ति को स्वयं को कृष्ण के विषयों के बारे में श्रवण करने में क्यों नहीं लगाना चाहिए? क्या इसमें कोई कठिनाई है?”
670327 - प्रवचन स.ब ०१. ०२. १४-१६ - सैन फ्रांसिस्को