HI/670329 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"आत्मा शाश्वत है, न हन्यते हन्यमाने शरीरे (भ.गी. २.२०) 'इस शरीर के नष्ट हो जाने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।' वह केवल शरीर बदलती रहती है। एक अन्य प्रकार के शरीर को हस्तांतरित आत्मा हमें जीवन की भौतिक अवधारणा के लिए पुनः जीवित करती है। इसका वर्णन भगवद गीता में भी किया गया है, यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् (भ.गी. ८.६)। मृत्यु के समय, यदि हमारी चेतना शुद्ध है, तो अगला जीवन भौतिक नहीं होता है, अगला जीवन शुद्ध आध्यात्मिक जीवन होता है। किन्तु यदि हमारी चेतना मृत्यु के समय शुद्ध नहीं है, तो हमें इस भौतिक शरीर को फिर से धारण करना होगा। यह प्रकृति के नियम से चलने वाली प्रक्रिया है।"
670329 - प्रवचन श्री.भा. १.२.१७ - सैन फ्रांसिस्को