HI/670829 - हंसदूत को लिखित पत्र, वृंदावन

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हंसदूत को पत्र (पृष्ठ १ से २)
हंसदूत को पत्र (पृष्ठ २ से २)
(कीर्त्तनानन्द को लेख)



अगस्त २९, १९६७

बोस्टन

मेरे प्रिय हंसदूत,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। आपके हाल ही के पत्र के लिए धन्यवाद। मुझे यह जानकर खुशी हो रही है कि आप बोस्टन में सहज हैं, और आप अच्छा कृष्ण प्रसादम बनाने में अपनी ऊर्जा को वहां संलग्न कर रहें हैं। मुझे यह जानकर भी बहुत प्रसन्नता हो रही है कि हिमावती को निश्चित रूप से बच्चा होने वाला है। यह एक बहुत ही अद्भुत बात है, और निश्चित रूप से कृष्ण अपनी उपस्थिति से आपके घर को आशीर्वाद देंगे, क्योंकि आप और आपकी पत्नी दोनों ही उनके सच्चे सेवक हैं; बच्चे के आने की सबसे अच्छी तैयारी माता-पिता को सिर्फ कृष्ण भावनामृत में बने रहना चाहिए, और निश्चित रूप से, उसके लिए सबसे अच्छा साधन भगवान के पवित्र नामों का जप करना, और भगवद गीता और श्रीमद भागवतम को सुनना है। मैं बहुत सराहना करता हूँ कि आप विभिन्न केंद्रों को खोलने में मदद करने में आनंद लेते हैं, और वह निश्चित रूप से आपकी ओर से प्रशंसनीय है. हालांकि, आपको अपनी पत्नी और बच्चे पर पूरी तरह से ध्यान देना चाहिए; गृहस्थ के रूप में अब आपका पहला कर्तव्य अपनी पत्नी और बच्चे के लिए अच्छी तरह से प्रदान करना है; गृहस्थ के रूप में अब आपका पहला कर्तव्य अच्छी तरह से प्रदान करना है

[पाठ अनुपस्थित]

सितम्बर, १०,६७ [हस्तलिखित]

अर्जुन को प्रभु ने लड़ना छोड़ देने के लिए प्रेरित नहीं किया; बल्कि उन्हें उनके कर्तव्य के प्रति प्रोत्साहित किया गया था, लेकिन साथ ही, वह कृष्ण के लिए ऐसा करना चाहते थे। यही कृष्ण भावनामृत का रहस्य है--ऐसा नहीं है कि हम सभी को प्रचारक बनना है, लेकिन यह कि हम सभी अपना जीवन या अपनी चेतना (चाहे किसी भी क्षमता में) भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित करें। अगर मंदिर में व्यवस्ता बानी रहती है, तो यह ठीक है। लेकिन पारिवारिक जीवन के लिए गोपनीयता और सुविधा की एक निश्चित मात्रा की आवश्यकता होती है, जो हमेशा उपलब्ध नहीं हो सकती है। मैं बस चिंतित हूं कि आप खुश और संतुष्ट हो, तो आप सबसे महत्वपूर्ण बात, कृष्ण भावनामृत पर, बिना परेशानी के, अनुसरण कर सकते है। रूपनुगा और दामोदर दोनों इस संबंध में अच्छा कर रहे हैं, और मैं आपके लिए भी यही कामना करता हूं।
मेरे आध्यात्मिक गुरु की आपकी सराहना बहुत प्रशंसनीय है। जो समझता है और अनुशासित उत्तराधिकार की सराहना करता है, निश्चित रूप से उन्नत है, और हमें हमेशा बहुत सावधान रहना चाहिए उन लोगों को पूरा सम्मान देने के लिए, जिन्होंने इतनी सावधानी से हमसे पहले, दिव्य ज्ञान के इस उत्कृष्ट फल को संभाला है। थोड़ा सा बदलाव भी इसे नुकसान कर देगा। यही कारण है कि मैं हमेशा आपको केवल वही ज्ञान देने में इतना सावधान रहा हूं, जो मैंने अपने गुरु महाराज से सुनी हैं। कृपया हिमावती, और कोई भी अन्य लोग जो आपके साथ हो सकते हैं, मेरा आशीर्वाद प्रदान करें । आशा है की आप सब ठीक हैं।

आपका नित्य शुभचिंतक,

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी

श्रीमान सत्स्वरूप ब्रह्मचारी
श्रीमान हंसदूत अधिकारी
१०३ इ. ब्रुकलिन गली
बोस्टन, मास्स. ०२११८
यू.एस.ए.

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
श्री राधा दामोदर मंदिर
सेवा कुंज,
वृंदावन (मथुरा)
उ.प्र.