HI/670915 - गर्गमुनि को लिखित पत्र, दिल्ली

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रूपानुग को पत्र (पृष्ठ १ से २)
रूपानुग को पत्र (पृष्ठ २ से २)
(अच्युतानंद द्वारा लेख)


मेरे प्रिय गर्गमुनि,
कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं आपकी बीमारी को लेकर बहुत चिंतित था, लेकिन मुझे ब्रह्मानन्द से खबर मिली है कि आप सुधार कर रहें हैं। अब जो भी स्वास्थ्य की स्थिति हो मैं आपको सलाह देता हूं कि जितना संभव हो मिश्री लें हमेशा अपने मुंह में एक टुकड़ा रखें। जहां तक खाने का सवाल है तो पके हुए पपीते को जितना हो सके लें, यदि संभव हो तो हरे पपीते को भी उबाल लें, यह आपका आहार और दवा होगी। इसके अलावा पर्याप्त आराम लें और हरे कृष्ण का जप करें; जब तक हमें यह भौतिक शरीर मिला है, तब तक हमें इन स्थितियों से गुजरना होगा, यदि हम कृष्ण के प्रति अपने प्रेम को बढ़ाएंगे तो हम इस माया से बाहर निकलने में सक्षम होंगे। इसलिए जो लोग कृष्ण चेतना को बेहतर बनाने के लिए प्रयास नहीं करते हैं, वे बस अपना बहुमूल्य समय और मानव जीवन व्यर्थ कर रहे हैं। उनका मानव जीवन भौतिक शरीर की उलझनों से बाहर निकलने का मौका है। हमें अपनी गतिविधियों के अनुसार भौतिक शरीर मिलता है, हठी पुरुषों को अगले जीवन में कुत्तों के शरीर मिलते हैं, कृष्ण चेतना में पुरुषों को कृष्ण की तरह शरीर मिलता है, इसलिए यदि मानव जीवन की विकसित चेतना कृष्ण चेतना को केंद्रित करना है ताकि हम भौतिक उलझन के चंगुल से बाहर निकल सकें। इस सत्य का प्रचार पूरी दुनिया में किया जाना चाहिए और जो लोग काफी बुद्धिमान हैं, वे कृष्ण चेतना को बहुत गंभीरता से लेंगे। आप बहुत जल्द ठीक हो जाएंगे बाकी सुनिश्चित है, लेकिन इस रोगग्रस्त हालत से बाहर निकलने के बाद कृपया नियमित आदतों के साथ स्वंय को स्वस्थ रखें दिन में कम से कम एक बार आप स्नान करें और समय पर पीएं और सोएं। अब आप शादीशुदा आदमी हैं आपको मैथुन जीवन की सुविधा मिली है, लेकिन इसे भी विनियमित किया जाना चाहिए। विकसित कृष्ण चेतना इन्द्रिय तृप्ति की प्रवृत्ति को कम करेगी और बहुत अधिक इन्द्रिय तृप्ति भौतिक शरीर को प्राप्त करने का कारण है। तो शारीरिक अशांति नहीं होनी चाहिए यह एक विनियमित जीवन को बनाए रखने के लिए और आसानी से हमारी कृष्ण चेतना जारी रखने के लिए आवश्यक है। मैं कृष्ण से आपके शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना करूंगा।
आपका नित्य शुभचिंतक,


गर्गमुनि, ब्रह्मनन्द
सी/ओ इस्कॉन २६ २वां पंथ
न्यू यॉर्क १०००३ एन.वाई.

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
डाकघर बॉक्स १८४६
दिल्ली ६

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मंदिर, सेवा कुंज,
वृंदावन (मथुरा)
उ.प्र.