HI/671013 - दामोदर को लिखित पत्र, कलकत्ता

Revision as of 10:34, 25 January 2023 by Harsh (talk | contribs) (Created page with "Category: HI/1967 - श्रील प्रभुपाद के पत्र Category: HI/1967 - श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
दामोदर को पत्र (पृष्ठ १ से २)
दामोदर को पत्र (पृष्ठ २ से २)


अक्टूबर १३, १९६७


मेरे प्रिय दामोदर,

कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं आपके ९ अक्टूबर के पत्र की प्राप्ति में हूँ। मुझे यह सुनकर बहुत दुख हुआ कि कीर्त्तनानन्द आपको भगवा वस्त्र और सिर पर लगे वैष्णव तिलक छोड़ने कि सलाह दे रहे हैं। कृपया इस मूर्खता को रोकें क्योंकि मैंने कीर्त्तनानन्द को इस तरह से कार्य करने का निर्देश कभी नहीं दिया। कीर्त्तनानन्द के इस कार्य से मैं बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हूँ। कीर्त्तनानन्द को मुझसे परामर्श किए बिना, आपको इस तरह से निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है। लोग हरे कृष्ण के जप कि ओर आकर्षित हो रहे हैं न कि कीर्तनानंद के उपकरणों की ओर। कीर्त्तनानन्द ने मुझे सुझाव दिया कि जब वह यहाँ थे तो अमेरिकियों को भगवा वस्त्र और वैष्णव तिलक पसंद नहीं है। मैंने उनसे व्यक्तिगत रूप से कहा था कि अगर आपको लगता है कि बड़ी संख्या में अमेरिकी आपका अनुसरण करेंगे, बस भगवा वस्त्र और वैष्णव तिलक नहीं होने के कारण, इसलिए मैंने उन्हें लंदन में कुछ दिनों के लिए छोड़ने और इस सिद्धांत का परीक्षण करने की सलाह दी। लेकिन वह सीधे न्यू यॉर्क चले गए और अब मुझसे परामर्श किए बिना वह गड़बड़ी पैदा कर रहे हैं। मैंने इन तरीकों को मंजूरी नहीं दी है। मेरी राय में, भगवा वस्त्रों में साफ-सुथरे मुंडवाए गए ब्रह्मचारी और ग्रहस्थ बैकुंठ के निवासी की तरह दिखते हैं। प्रार्थनाओं का अंग्रेजी में अनुवाद अच्छा है और अगर कोई बिना किसी भगवा वस्त्र के अच्छे अमेरिकी सज्जन की तरह कपड़े पहनते हैं, तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है; लेकिन मेरे हर शिष्य के शीश पर ध्वज और तिलक के निशान होने चाहिए। यह आवश्यक है। इसके अलावा, किसी को भी मेरी मंजूरी के बिना कुछ भी नहीं करना चाहिए।
मुझे यह सुनकर बहुत दुख होता है कि कीर्त्तनानन्द, बिना कुछ व्यावहारिक किए, अपने विचारों को लगातार बदलते रहते हैं। वह हमारे संस्था में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने भगवा वस्त्रों को साफ-सुथरा मुंडवा कर धारण किया और झंडा लिया और अब वह अपनी स्थिति बदल रहे हैं। आपने मुझसे पूछा है कि आप सही हैं या कीर्त्तनानन्द की मूर्खतापूर्ण सलाह का पालन करते हुए आगे बड़े और मैं स्पष्ट रूप से कहता हूँ कि कीर्त्तनानन्द गलत हैं और आप सही हैं जब आप कहते है कि अगर मैं आपके कार्यों से संतुष्ट नहीं हूँ तो आंदोलन निष्फल होगा।
आपने यह कहने के लिए लिखा है कि एक भक्त भगवान कृष्ण के लिए कुछ भी कर सकता है; यह सही है बशर्ते इस तरह की कार्यवाही को सीधे कृष्ण या उनके प्रामाणिक प्रतिनिधि द्वारा स्वीकृत किया जाए। फिल्म निर्माण का विचार बहुत अच्छा है और कृष्णभावनामृत के लिए किसी भी प्रचार माध्यम का उपयोग किया जा सकता है। भविष्य में अगर आपको मौका मिलता है तो हम भगवान चैतन्य के जीवन पर, भगवद गीता और श्रीमद भागवतम के दृश्यों पर कई फिल्मों का निर्माण कर सकते हैं।
मार्च तक बोस्टन में रहने और फिर फिल्म के अवसरों के लिए न्यू यॉर्क के लिए शुरू करने की आपकी योजना मेरे द्वारा पूरी तौर से अनुमोदित है। आपके ऊर्जावान उत्साह के लिए धन्यवाद। आशा है कि आप ठीक हैं।
आपका नित्य शुभचिंतक,

ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी


दामोदर दास अधिकारी
हंसदूत दास अधिकारी
जदुरानी देवी दासी
९५, [अस्पष्ट]
६३-इ.-ब्रुकलिन-५४
बोस्टन [अस्पष्ट] मैसाचुसेट्स
यू.एस.ए. ०२११८


ए.सी. भक्तिवेदांत स्वामी
सी/ओ मदन दत्ता
७६ दुर्गाचरण डॉक्टर गली
कलकत्ता, १४
भारत