भगवद गीता में आप पाएंगे, सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो (भ.गी. १५.१५) । कृष्ण कहते हैं कि "मैं सभी के हृदय में स्थित हूँ ।" सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मत्तः स्मृतिर् ज्ञानम अपोहनम च: "और मेरे माध्यम से व्यक्ति भूलता है और याद रखता है ।" तो क्यों कृष्ण ऐसा कर रहे हैं ? वह किसी को भूलने में मदद कर रहे है, और वह किसी को याद करने में मदद कर रहे है । क्यों ? वही जवाब: ये यथा मां प्रपद्यन्ते । यदि आप कृष्ण, या भगवान को भूलना चाहते हैं, तो वह आपको इस तरह से बुद्धिमत्ता देंगे कि आप उन्हें हमेशा के लिए भूल जाएंगे । ईश्वर की उपासना में आने का कोई मौका नहीं होगा । लेकिन यह कृष्ण के भक्त हैं । वे बहुत दयालु हैं । कृष्ण बहुत सख्त है । अगर कोई भी उन्हें भूलना चाहता है, तो वह उसे इतने मौके देंगे कि वह कभी यह नहीं समझ पाएगा कि कृष्ण क्या हैं । लेकिन कृष्ण के भक्त कृष्ण की तुलना में अधिक दयालु हैं । इसलिए वे कृष्ण भावनामृत या भगवद भावनामृत अभागी लोगों को देते हैं ।
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