HI/680325 बातचीत - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - सैन फ्रांसिस्को]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - सैन फ्रांसिस्को]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680325R1-SAN_FRANCISCO_ND_01.mp3</mp3player>|"इसलिए मुझे कृष्ण चेतना का अभ्यास करना है ताकि अंतिम क्षण में मैं कृष्ण को न भूल जाऊँ। तब मेरा जीवन सफल है। भगवद गीता में कहा गया है कि यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् ([[Vanisource:BG 8.6|BG 8.6]]). मौत का, जैसा आदमी सोचता है, उसका अगला जीवन वैसा शुरू होता है। बहुत अच्छा उदाहरण दिया जाता है, जैसे हवा बह रही है, इसलिए अगर हवा एक अच्छा गुलाब के बगीचे में बह रही है, तो गुलाब की सुगंध को अन्य स्थान पर ले जाती है। और यदि हवा एक गंदी जगह पर बह रही है तो दुर्गन्ध को अन्य स्थान पर ले जाती है। इसी प्रकार मानसिक स्थिति चेतना मेरे अस्तित्व का सूक्ष्म रूप है। "|Vanisource:680325 - Conversation - San Francisco|680325 - बातचीत - सैन फ्रांसिस्को}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/680324b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680324b|HI/680326 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680326}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680325R1-SAN_FRANCISCO_ND_01.mp3</mp3player>|हमें कृष्ण भावनामृत का अभ्यास करना है ताकि हम अंतिम क्षण में कृष्ण को भूल जाएं। तब हमारा जीवन सफल है। भगवद गीता में कहा गया है कि यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् (भ.गी. .)। मृत्यु के समय, जैसा व्यक्ति सोचता है, उसका अगला जीवन वैसा शुरू होता है। यँहा बहुत अच्छा उदाहरण दिया जाता है, जैसे हवा बह रही है, तो यदि हवा एक अच्छे गुलाब के बगीचे के ऊपर से बह रही है, तो गुलाब की सुगंध को अन्य स्थान पर ले जाती है। और यदि हवा एक गंदी जगह पर से बह रही है तो दुर्गन्ध को अन्य स्थान पर ले जाती है। इसी प्रकार मानसिक स्थिति चेतना हमारे अस्तित्व का सूक्ष्म रूप है।|Vanisource:680325 - Conversation - San Francisco|680325 - बातचीत - सैन फ्रांसिस्को}}

Latest revision as of 03:09, 26 May 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
हमें कृष्ण भावनामृत का अभ्यास करना है ताकि हम अंतिम क्षण में कृष्ण को भूल न जाएं। तब हमारा जीवन सफल है। भगवद गीता में कहा गया है कि यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् (भ.गी. ८.६)। मृत्यु के समय, जैसा व्यक्ति सोचता है, उसका अगला जीवन वैसा शुरू होता है। यँहा बहुत अच्छा उदाहरण दिया जाता है, जैसे हवा बह रही है, तो यदि हवा एक अच्छे गुलाब के बगीचे के ऊपर से बह रही है, तो गुलाब की सुगंध को अन्य स्थान पर ले जाती है। और यदि हवा एक गंदी जगह पर से बह रही है तो दुर्गन्ध को अन्य स्थान पर ले जाती है। इसी प्रकार मानसिक स्थिति चेतना हमारे अस्तित्व का सूक्ष्म रूप है।
680325 - बातचीत - सैन फ्रांसिस्को