HI/680325 बातचीत - श्रील प्रभुपाद सैन फ्रांसिस्को में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 03:09, 26 May 2022 by Meghna (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
हमें कृष्ण भावनामृत का अभ्यास करना है ताकि हम अंतिम क्षण में कृष्ण को भूल न जाएं। तब हमारा जीवन सफल है। भगवद गीता में कहा गया है कि यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् (भ.गी. ८.६)। मृत्यु के समय, जैसा व्यक्ति सोचता है, उसका अगला जीवन वैसा शुरू होता है। यँहा बहुत अच्छा उदाहरण दिया जाता है, जैसे हवा बह रही है, तो यदि हवा एक अच्छे गुलाब के बगीचे के ऊपर से बह रही है, तो गुलाब की सुगंध को अन्य स्थान पर ले जाती है। और यदि हवा एक गंदी जगह पर से बह रही है तो दुर्गन्ध को अन्य स्थान पर ले जाती है। इसी प्रकार मानसिक स्थिति चेतना हमारे अस्तित्व का सूक्ष्म रूप है।
680325 - बातचीत - सैन फ्रांसिस्को