HI/680614 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 17:33, 17 September 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
प्रकृति के नियम की आप अवज्ञा नहीं कर सकते । यह आप पर लागू होगा ही । प्रकृति के नियम की तरह, सर्दी का मौसम । आप इसे बदल नहीं सकते । यह आप पर लागू किया जाएगा । प्रकृति का नियम, गर्मी का मौसम, आप इसे बदल नहीं सकते हैं, कुछ भी । प्रकृति के नियम या ईश्वर के नियम, सूर्य पूर्वी तरफ से उदय होता है और पश्चिमी तरफ अस्त होता है । आप इसे बदल नहीं सकते हैं, कुछ भी । यह आपको समझना होगा कि प्रकृति के नियम कैसे चल रहे हैं । यह कृष्ण भावनामृत है, प्रकृति के नियमों को समझना । और जैसे ही प्रकृति के नियमों की बात होती है, हमें स्वीकार करना चाहिए कि एक नियमों का निर्माता है । प्रकृति के नियम अपने आप विकसित नहीं हो सकते । पृष्ठभूमि पर कुछ सत्ता तो होनी ही चाहिए । भगवद गीता इसलिए दसवे अध्याय में कहती हैं कि मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् (भ.गी. ९.१०): "मेरी दिशा के अंतर्गत, अधीक्षण में, भौतिक नियम काम कर रहे हैं। |
680614 - प्रवचन भ.गी. ४.८ - मॉन्ट्रियल |