HI/680616 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"यह मानव शरीर का रूप, यह बहुत कम प्राप्त होता है। इसका दुरुपयोग नहीं किया जाना चाहिए। यह पहला ज्ञान है। लेकिन लोगों को उस तरह से शिक्षित नहीं किया जाता है। उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है कि, भावना का आनंद लें: आनंद लें, आनंद लें, आनंद लें। कुछ बदमाश आते हैं, वह भी यह कहते हैं, 'सब ठीक है, जाओ, आनंद लो। बस पंद्रह मिनट ध्यान करो'। लेकिन वास्तव में, यह शरीर भावपूर्ण आनंद के लिए नहीं है। हमें आनंद की आवश्यकता है क्योंकि यह शरीर की मांग है। यदि हम शरीर को स्वस्थ स्थिति में रखना चाहते हैं, तो शरीर की माँगें- खाना, सोना, संभोग करना, और बचाव करना - प्रदान किया जाना चाहिए। लेकिन यह उत्तेजित नहीं होना चाहिए। इसलिए जीवन के मानव रूप में, तपस्या। । तपस्या का अर्थ है आत्मसंयम, प्रतिज्ञा, प्रण। ये सभी शास्त्रों की शिक्षा हैं।"
680616 - प्रवचन SB 07.06.03 - मॉन्ट्रियल