HI/680710b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680710SB-MONTREAL_ND_02.mp3</mp3player>|"तो विश्वास के, या कृष्ण चेतना के इस मंच पर आने के लिए, प्रशिक्षण है। उस प्रशिक्षण को विद्धि मार्ग, नियामक-सिद्धांत, नियामक सिद्धांतों का पालन करना, कहा जाता है। इसलिए इस संपूर्ण वर्णाश्रम, वैदिक प्रणाली, विभिन्न जाति - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, ब्रह्मचारी, ग्रहस्त, वानप्रस्ता, संन्यास —  की बहुत ही वैज्ञानिक रूप से रचना, हमें किसी भी डर, निडरता, आत्म विश्वासी ऐसे धीरे-धीरे ऊपर उठाने के लिए की गई हैं। तो विप्र का अर्थ है पूरी तरह से ब्राह्मण बनने का पिछला चरण।"|Vanisource:680710 - Lecture SB 07.09.10 - Montreal|680710 - प्रवचन SB 07.09.10 - मॉन्ट्रियल}}
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680710SB-MONTREAL_ND_02.mp3</mp3player>|तो विश्वास के, या कृष्ण भावनामृत के इस मंच पर आने के लिए, प्रशिक्षण है । उस प्रशिक्षण को कहा जाता है विधि मार्ग, नियामक-सिद्धांत, नियामक सिद्धांतों का पालन करना । तो इस पूरी वर्णाश्रम प्रथा, वैदिक प्रणाली, विभिन्न जाति - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास —  की बहुत ही वैज्ञानिक रूप से रचना की गई है, ताकि हम किसी भी डर के बिना, निडरता से, आत्म विश्वास के स्तर पर धीरे-धीरे ऊपर उठे । तो विप्र का अर्थ है पूरी तरह से ब्राह्मण बनने से बिलकुल पिछला चरण ।|Vanisource:680710 - Lecture SB 07.09.10 - Montreal|680710 - प्रवचन श्री.भा. ७..१० - मॉन्ट्रियल}}

Latest revision as of 06:26, 9 January 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
तो विश्वास के, या कृष्ण भावनामृत के इस मंच पर आने के लिए, प्रशिक्षण है । उस प्रशिक्षण को कहा जाता है विधि मार्ग, नियामक-सिद्धांत, नियामक सिद्धांतों का पालन करना । तो इस पूरी वर्णाश्रम प्रथा, वैदिक प्रणाली, विभिन्न जाति - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, ब्रह्मचारी, गृहस्थ, वानप्रस्थ, संन्यास — की बहुत ही वैज्ञानिक रूप से रचना की गई है, ताकि हम किसी भी डर के बिना, निडरता से, आत्म विश्वास के स्तर पर धीरे-धीरे ऊपर उठे । तो विप्र का अर्थ है पूरी तरह से ब्राह्मण बनने से बिलकुल पिछला चरण ।
680710 - प्रवचन श्री.भा. ७.९.१० - मॉन्ट्रियल