HI/680729 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680729IN-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|"कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ([[Vanisource:BG 18.66|BG 18.66]]): "मेरे प्यारे अर्जुन, समस्त प्रकार के धर्मों का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ।" Then what about other things?" Kṛṣṇa assures, ahaṁ tvāṁ sarva-pāpebhyo mokṣayiṣyāmi. If somebody thinks that "If I give up all other engagements and simply be engaged in Your service, to carry out Your order, then what about my other engagements? I have got so many other duties. I am engaged in my family affairs, I am engaged in my social affairs, I am engaged in my country's affairs, community affairs, so many things, my... Then what about those things?" Kṛṣṇa says that "That I will see, how you can do it properly.""|Vanisource:680729 - Lecture Initiation - Montreal|680729 - प्रवचन Initiation - मॉन्ट्रियल}}
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{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/680728 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680728|HI/680802 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680802}}
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680729IN-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, सर्वधर्मान् परित्यज्य मामे एकम शरणं व्रज ([[HI/BG 18.66|भ.गी. १८.६६]]): "मेरे प्रिय अर्जुन, तुम समस्त प्रकार के कार्यो का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । बस मेरी सेवा में प्रवृत्त हो या फिर मेरे आदेशों का पालन करो ।" "फिर अन्य चीजों के बारे में क्या?" कृष्ण आश्वासन देते है, अहं त्वाम सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि । अगर कोई यह सोचता है कि "अगर मैं अन्य सभी कार्यो को छोड़ दूं और बस आपकी सेवा में लगा रहूं, आपके आदेश को पूरा करने के लिए, तो मेरे अन्य कार्यो का क्या होगा ? मेरे और भी कई कर्तव्य हैं ।  मैं अपने पारिवारिक मामलों में व्यस्त हूं, मैं अपने सामाजिक मामलों में व्यस्त हूं, मैं अपने देश के मामलों में व्यस्त हूं, सामुदायिक मामलों में व्यस्त हूं, बहुत सी चीजें... फिर उन चीजों के बारे में क्या ?" कृष्ण कहते हैं कि "वो मैं देखूंगा, की आप इसे ठीक से कैसे कर सकते हैं ।"|Vanisource:680729 - Lecture Initiation - Montreal|680729 - प्रवचन दीक्षा - मॉन्ट्रियल}}

Latest revision as of 17:34, 17 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, सर्वधर्मान् परित्यज्य मामे एकम शरणं व्रज (भ.गी. १८.६६): "मेरे प्रिय अर्जुन, तुम समस्त प्रकार के कार्यो का परित्याग करो और मेरी शरण में आओ । बस मेरी सेवा में प्रवृत्त हो या फिर मेरे आदेशों का पालन करो ।" "फिर अन्य चीजों के बारे में क्या?" कृष्ण आश्वासन देते है, अहं त्वाम सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि । अगर कोई यह सोचता है कि "अगर मैं अन्य सभी कार्यो को छोड़ दूं और बस आपकी सेवा में लगा रहूं, आपके आदेश को पूरा करने के लिए, तो मेरे अन्य कार्यो का क्या होगा ? मेरे और भी कई कर्तव्य हैं । मैं अपने पारिवारिक मामलों में व्यस्त हूं, मैं अपने सामाजिक मामलों में व्यस्त हूं, मैं अपने देश के मामलों में व्यस्त हूं, सामुदायिक मामलों में व्यस्त हूं, बहुत सी चीजें... फिर उन चीजों के बारे में क्या ?" कृष्ण कहते हैं कि "वो मैं देखूंगा, की आप इसे ठीक से कैसे कर सकते हैं ।"
680729 - प्रवचन दीक्षा - मॉन्ट्रियल