HI/680802b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/680802 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680802|HI/680803 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680803}}
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680802SB-MONTREAL_ND_02.mp3</mp3player>|तो भगवान का दूसरा नाम अधोक्षज है, जिसका अर्थ हमारी धारणा से परे । आप भगवान को सीधे देखकर या सीधे सूंघ कर या सीधे श्रवण करके या सीधे चखकर या स्पर्श करके नहीं समझ सकते । यह वर्तमान समय में संभव नहीं है, जब तक आप आध्यात्मिक रूप से उन्नत नहीं हैं, जब तक हमारी देखने की शक्ति ठीक नहीं हो जाती, हमारी सुनने की शक्ति संशोधित नहीं होती । इस तरह, जब हमारी इंद्रियाँ शुद्ध हो जाती हैं, तब हम ईश्वर के बारे में सुन सकते हैं, हम ईश्वर को देख सकते हैं, हम ईश्वर को सूंघ सकते हैं, हम ईश्वर को छू सकते हैं । यह संभव है । उस विज्ञान में प्रशिक्षण, ईश्वर को कैसे देखे, ईश्वर को कैसे सुने, अपनी इंद्रियों द्वारा ईश्वर को कैसे छुए, यह संभव है । उस विज्ञान को भक्ति सेवा या कृष्ण भावनामृत कहा जाता है ।|Vanisource:680802 - Lecture SB 01.02.05 - Montreal|680802 - प्रवचन श्री.भा. १.२.५ - मॉन्ट्रियल}}
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680802SB-MONTREAL_ND_02.mp3</mp3player>|भगवान का दूसरा नाम अधोक्षज है, जिसका अर्थ है हमारी धारणा से परे। आप भगवान को सीधे रूप से देखकर , सूंघ कर , श्रवण कर, चखकर या स्पर्श करके नहीं समझ सकते। यह वर्तमान समय में संभव नहीं है, जब तक आप आध्यात्मिक रूप से उन्नत नहीं हैं, जब तक हमारी देखने की शक्ति ठीक नहीं हो जाती, हमारी सुनने की शक्ति संशोधित नहीं होती। इस तरह, जब हमारी इंद्रियाँ शुद्ध हो जाती हैं, तब हम ईश्वर के बारे में सुन सकते हैं, हम ईश्वर को देख सकते हैं, हम ईश्वर को सूंघ सकते हैं, हम ईश्वर को छू सकते हैं। यह संभव है। उस विज्ञान में प्रशिक्षण, ईश्वर को कैसे देखे, ईश्वर को कैसे सुने, अपनी इंद्रियों द्वारा ईश्वर को कैसे छुए, यह संभव है। यह विज्ञान भक्तिमय सेवा या कृष्ण भावनामृत कहलाता है।|Vanisource:680802 - Lecture SB 01.02.05 - Montreal|680802 - प्रवचन श्री.भा. १.२.५ - मॉन्ट्रियल}}

Latest revision as of 06:05, 14 June 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
भगवान का दूसरा नाम अधोक्षज है, जिसका अर्थ है हमारी धारणा से परे। आप भगवान को सीधे रूप से देखकर , सूंघ कर , श्रवण कर, चखकर या स्पर्श करके नहीं समझ सकते। यह वर्तमान समय में संभव नहीं है, जब तक आप आध्यात्मिक रूप से उन्नत नहीं हैं, जब तक हमारी देखने की शक्ति ठीक नहीं हो जाती, हमारी सुनने की शक्ति संशोधित नहीं होती। इस तरह, जब हमारी इंद्रियाँ शुद्ध हो जाती हैं, तब हम ईश्वर के बारे में सुन सकते हैं, हम ईश्वर को देख सकते हैं, हम ईश्वर को सूंघ सकते हैं, हम ईश्वर को छू सकते हैं। यह संभव है। उस विज्ञान में प्रशिक्षण, ईश्वर को कैसे देखे, ईश्वर को कैसे सुने, अपनी इंद्रियों द्वारा ईश्वर को कैसे छुए, यह संभव है। यह विज्ञान भक्तिमय सेवा या कृष्ण भावनामृत कहलाता है।
680802 - प्रवचन श्री.भा. १.२.५ - मॉन्ट्रियल