"जो भी व्यक्ति बिना किसी इच्छा के भगवान् की अहेतुकी भक्ति में लीन है, अमिश्रित भक्ति, जो केवल और केवल भगवान् के प्रेम से युक्त हो, अनुकुलेन कृष्णानुशीलनम, (चै च मध्य - १९.१६७) यदि ऐसी भक्ति हो तो भगवान् निश्चय ही प्रसन्न हो जायेंगे। "मां च योऽव्यभिचारेण, भक्तियोगेन सेवते।" इस भावना से यदि कोई बिना विचलित हुए भगवान् की भक्ति में लीन हैं तो उसकी क्या स्थिति है? "स गुणान्समतीत्यैतान (भा गी १४.२६),"। भौतिक प्रकृति के तीनो गुण, सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण की स्थिति तुरन्त ही बदल जाती है। "स गुणान्समतीत्यैतान्बह्मभूयाय कल्पते" तुरन्त ही वह अध्यात्मिक अर्थात ब्रह्म के स्तर पर पहुँच जाता है। यदि हम हरे कृष्ण का नाम जप बहुत अच्छे से करते हैं उसका अर्थ यह नहीं कि हमें कोई संगीतकार या गायक बनना है, "नहीं"अच्छी प्रकार का अर्थ है, निष्कपटता से और पूर्ण ध्यान लगाकर हरिनाम जप करना है। यदि तुम केवल हरे कृष्ण नाम पर अपना चित्त लगाओ, तो यह यह सब से उत्तम विधि है।"
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