HI/680822 - ब्रह्मानन्द को लिखित पत्र, मॉन्ट्रियल: Difference between revisions

(Created page with "Category:HI/1967 - श्रील प्रभुपाद के पत्र Category:HI/श्रील प्रभुपाद के सभी पत्र हि...")
 
 
Line 1: Line 1:
[[Category:HI/1967 - श्रील प्रभुपाद के पत्र]]
[[Category:HI/1968 - श्रील प्रभुपाद के पत्र]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के सभी पत्र हिंदी में अनुवादित]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के सभी पत्र हिंदी में अनुवादित]]
[[Category:HI/1967 - श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र]]
[[Category:HI/1968 - श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र]]
[[Category:HI/1967-03 - श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र]]
[[Category:HI/1968-08 - श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र जो लिखे गए - अमेरीका से]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र जो लिखे गए - कनाडा से]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र जो लिखे गए - अमेरीका, सैंन फ्रांसिस्को से]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र जो लिखे गए - कनाडा, मॉन्ट्रियल से]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र - अमेरीका]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र - कनाडा]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र - अमेरीका, सैंन फ्रांसिस्को]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,वार्तालाप एवं पत्र - कनाडा, मॉन्ट्रियल]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र - ब्रह्मानन्द को]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र - ब्रह्मानन्द को]]
[[Category:HI/1967 - श्रील प्रभुपाद के पत्र - मूल पृष्ठों के स्कैन सहित]]
[[Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र - जिनके पृष्ठ या पाठ गायब हैं]]
[[Category:HI/1968 - श्रील प्रभुपाद के पत्र - मूल पृष्ठों के स्कैन सहित]]
[[Category:HI/सभी हिंदी पृष्ठ]]
[[Category:HI/सभी हिंदी पृष्ठ]]
<div style="float:left">[[File:Go-previous.png|link= HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र -  दिनांक के अनुसार]]'''[[:Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र -  दिनांक के अनुसार|HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र -  दिनांक के अनुसार]], [[:Category:HI/1967 - श्रील प्रभुपाद के पत्र|1967]]'''</div>
<div style="float:left">[[File:Go-previous.png|link= HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र -  दिनांक के अनुसार]]'''[[:Category:HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र -  दिनांक के अनुसार|HI/श्रील प्रभुपाद के पत्र -  दिनांक के अनुसार]], [[:Category:HI/1968 - श्रील प्रभुपाद के पत्र|1968]]'''</div>
<div div style="float:right">
<div div style="float:right">
'''<big>[[Vanisource:670328 - Letter to Brahmananda written from San Francisco|Original Vanisource page in English]]</big>'''
'''<big>[[Vanisource:680822 - Letter to Brahmananda written from Montreal|Original Vanisource page in English]]</big>'''
</div>
</div>
{{LetterScan|670328_-_Letter_to_Brahmananda_1.jpg|Letter to Brahmananda (Page 1 of 2)}}
{{LetterScan|680822 - Letter to Brahmananda.jpg|Letter to Brahmananda (Page 1 of 2) (Page 2 Missing)}}
{{LetterScan|670328_-_Letter_to_Brahmananda_2.JPG|Letter to Brahmananda (Page 2 of 2)}}




अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ इंक.<br/>
3720 पार्क एवेन्यू<br/>
518 फ्रेड्रिक स्ट्रीट, सैन फ्रांसिस्को,कैलिफ़ 94117 टेलीफोन: 564-6670<br/>
मॉन्ट्रियल 18, क्यूबेक, कनाडा


आचार्य:स्वामी ए.सी. भक्तिवेदान्त<br/>
 
22  अगस्त, 1968,
 
 
मेरे प्रिय ब्रह्मानन्द,
 
कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। तुम्हारे नोट व नर्मजिल्द भगवद्गीता यथारूप के पीछे के कवर के लिए मैं तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ। मैंने इस सब को बहुत सराहा है। रूपरेखा और चित्र इत्यादी सभी कुछ। जहां तक स्वामी भक्तिवेदान्त लिखे होने की बात है, तो यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात नहीं है। स्वामी की उपाधी शुरु या अन्त में दी जा सकती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। और मेरे नाम को भगवान के बांई ओर लगाने को भी मैंने सराहा है। यह वास्तव में मस्तक पर नहीं हैबल्कि बांई बांह पर है। तो हम भगवान की भुजाएं हैं, क्योंकि हम माया के प्रभाव अथवा अभक्तों के विर्दअध लड़ाई कर रहे हैं।
 
दरअसल हम कृष्णभावनाभावित जन भगवान के सिपाही या उनकी भुजाएं हैं। और चूंकि साथ ही सभी जीवात्माएं भगवान की शक्ति हैं, तो शक्ति को हमेशा बांई ओर रखा जाता है। जैसा कि तुमने देखा है, राधारानी भगवान की बांई ओर होती हैं, लक्ष्मीजी भी भगवान की बांई ओर होती हैं। तो हम भी तटस्था शक्ति हैं, हूबहू राधारानी या लक्ष्मीजी की तरह तो नहीं हैं, पर भौतिक शक्ति से उच्च श्रेणी की हैं। तो हमें सदैव स्वयं को भगवान की बांई ओर रखना चाहिए और फिर भगवान की भुजाओं या सेना की तरह कार्य करना चाहिए। मैंने सजिल्द संस्करण के आवरण के इस विवरण को भी आनन्द के साथ देखा है और मैं देखता हूँ कि इस पर मेरा चित्र रहेगा व इसे डॉलर 6.95 पर बेचा जाएगा। और तुम्हें अग्रिम प्रतियों की अपेक्षा अक्तूबर अन्त में है।
 
चूंकि तुम्हारे प्रयास के कारण ही हम देख रहे हैं कि हमारी भगवद्गीता का प्रकाशन एक बड़े प्रकाशक द्वारा किया जा रहा है, इसलिए इस संदर्भ में मैं तुम्हें मेरा हार्दिक आशीष देता हूँ। और तुम्हारी कृपा से हम चैतन्य महाप्रभू की शिक्षाएं का प्रकाशन करने जा रहे हैं। तो मुझे यह जानकर आनन्द होगा कि दाई निप्पॉन के साथ क्या स्थिति है। जैसे ही तुम मुझसे कहोगे, मैं तुम्हें क्रेडिट का चेक भेज दूंगा। एक और बात यह है कि, भारत में फचलन है कि जब कभी हम एक हज़ार प्रतियों का ऑर्डर देते हैं तो वे 1,100 प्रतियां छापते हैं। ये 100 प्रतियां वे निःशुल्क छापते हैं। अवश्य ही भारतच में जो शैली है उसके अनुसार, काग़ज़ खरीददार मुहैया कराता है और छपाईखाना एक सौ प्रतियां अधिक निःशुल्क छाप देता है। मुझे नहीं पता कि यह प्रणाली जापानी प्रकाशकों पर लागू है या नहीं। बहरहाल, तुमसे सूचना मिलते ही मैं क्रेडिट के पत्र का प्रबंध कर दूंगा।
 
तुम्हारे दिनांक 18 अगस्त, 1968 के पत्र में जो तुमने राधा कृष्ण लीला का विवरण दिया है, उससे मैं यह नहीं जान पाया कि यह कोई फिल्म का प्रदर्शन था या नहीं, पर विवरण बहुत अच्छा है। तो क्या इसकेअर्थ यह है कि इस प्रदर्शन की फिल्म बना ली गई है। इस बारे में और जानकारी प्राप्त कर मुझे आनन्द होगा।
 
आशा करते हुए कि तुम बिलकुल ठीक हो, मैं रहूंगा,
 
सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी <br/>
 
ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी
 
पी.एस. मुझे एकायनी दासी का पत्र मिला है। कृपया उसके भाग के लिए उसका धन्यवाद करना।
 
राधाष्टमी 31 अगस्त 1968 को है।
 
कृपया श्यामसुन्दर को सूचित करना कि उसकी इच्छानुसार, मैंने कल दोपहर 1655 डॉलर लंदन में बैंक ऑफ लन्दन में भेज दिए हैं।

Latest revision as of 08:50, 23 April 2022

Letter to Brahmananda (Page 1 of 2) (Page 2 Missing)


3720 पार्क एवेन्यू
मॉन्ट्रियल 18, क्यूबेक, कनाडा


22 अगस्त, 1968,


मेरे प्रिय ब्रह्मानन्द,

कृपया मेरे आशीर्वाद स्वीकार करो। तुम्हारे नोट व नर्मजिल्द भगवद्गीता यथारूप के पीछे के कवर के लिए मैं तुम्हारा बहुत धन्यवाद करता हूँ। मैंने इस सब को बहुत सराहा है। रूपरेखा और चित्र इत्यादी सभी कुछ। जहां तक स्वामी भक्तिवेदान्त लिखे होने की बात है, तो यह बहुत महत्त्वपूर्ण बात नहीं है। स्वामी की उपाधी शुरु या अन्त में दी जा सकती है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। और मेरे नाम को भगवान के बांई ओर लगाने को भी मैंने सराहा है। यह वास्तव में मस्तक पर नहीं हैबल्कि बांई बांह पर है। तो हम भगवान की भुजाएं हैं, क्योंकि हम माया के प्रभाव अथवा अभक्तों के विर्दअध लड़ाई कर रहे हैं।

दरअसल हम कृष्णभावनाभावित जन भगवान के सिपाही या उनकी भुजाएं हैं। और चूंकि साथ ही सभी जीवात्माएं भगवान की शक्ति हैं, तो शक्ति को हमेशा बांई ओर रखा जाता है। जैसा कि तुमने देखा है, राधारानी भगवान की बांई ओर होती हैं, लक्ष्मीजी भी भगवान की बांई ओर होती हैं। तो हम भी तटस्था शक्ति हैं, हूबहू राधारानी या लक्ष्मीजी की तरह तो नहीं हैं, पर भौतिक शक्ति से उच्च श्रेणी की हैं। तो हमें सदैव स्वयं को भगवान की बांई ओर रखना चाहिए और फिर भगवान की भुजाओं या सेना की तरह कार्य करना चाहिए। मैंने सजिल्द संस्करण के आवरण के इस विवरण को भी आनन्द के साथ देखा है और मैं देखता हूँ कि इस पर मेरा चित्र रहेगा व इसे डॉलर 6.95 पर बेचा जाएगा। और तुम्हें अग्रिम प्रतियों की अपेक्षा अक्तूबर अन्त में है।

चूंकि तुम्हारे प्रयास के कारण ही हम देख रहे हैं कि हमारी भगवद्गीता का प्रकाशन एक बड़े प्रकाशक द्वारा किया जा रहा है, इसलिए इस संदर्भ में मैं तुम्हें मेरा हार्दिक आशीष देता हूँ। और तुम्हारी कृपा से हम चैतन्य महाप्रभू की शिक्षाएं का प्रकाशन करने जा रहे हैं। तो मुझे यह जानकर आनन्द होगा कि दाई निप्पॉन के साथ क्या स्थिति है। जैसे ही तुम मुझसे कहोगे, मैं तुम्हें क्रेडिट का चेक भेज दूंगा। एक और बात यह है कि, भारत में फचलन है कि जब कभी हम एक हज़ार प्रतियों का ऑर्डर देते हैं तो वे 1,100 प्रतियां छापते हैं। ये 100 प्रतियां वे निःशुल्क छापते हैं। अवश्य ही भारतच में जो शैली है उसके अनुसार, काग़ज़ खरीददार मुहैया कराता है और छपाईखाना एक सौ प्रतियां अधिक निःशुल्क छाप देता है। मुझे नहीं पता कि यह प्रणाली जापानी प्रकाशकों पर लागू है या नहीं। बहरहाल, तुमसे सूचना मिलते ही मैं क्रेडिट के पत्र का प्रबंध कर दूंगा।

तुम्हारे दिनांक 18 अगस्त, 1968 के पत्र में जो तुमने राधा कृष्ण लीला का विवरण दिया है, उससे मैं यह नहीं जान पाया कि यह कोई फिल्म का प्रदर्शन था या नहीं, पर विवरण बहुत अच्छा है। तो क्या इसकेअर्थ यह है कि इस प्रदर्शन की फिल्म बना ली गई है। इस बारे में और जानकारी प्राप्त कर मुझे आनन्द होगा।

आशा करते हुए कि तुम बिलकुल ठीक हो, मैं रहूंगा,

सर्वदा तुम्हारा शुभाकांक्षी

ए.सी.भक्तिवेदान्त स्वामी

पी.एस. मुझे एकायनी दासी का पत्र मिला है। कृपया उसके भाग के लिए उसका धन्यवाद करना।

राधाष्टमी 31 अगस्त 1968 को है।

कृपया श्यामसुन्दर को सूचित करना कि उसकी इच्छानुसार, मैंने कल दोपहर 1655 डॉलर लंदन में बैंक ऑफ लन्दन में भेज दिए हैं।