हमें कृष्ण के लिए त्याग करना सीखना चाहिए । वही प्रेम का प्रतीक है । यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि (भ.गी. ९.२७) । यदि आप... आप कुछ खा रहे हो और आप यह निर्णय ले लो कि 'मैं वह कुछ भी ग्रहण नहीं करूंगा, जिसका भोग कृष्ण को नहीं लगाया गया है', बस फिर कृष्ण जान जायेंगे कि 'ओह, यह मेरा भक्त है' । 'मैं कृष्ण की सुन्दरता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं देखूँगा', कृष्ण समझ जायेंगे कि यह मेरा भक्त है । 'मैं हरे कृष्ण और कृष्ण के विषय के अतिरिक्त कुछ भी नहीं सुनूँगा '। इसके लिए तुम्हें बहुत धनवान, अति सुन्दर या फिर बहुत बड़ा ज्ञानी बनने की आवश्यकता नहीं । तुम्हें यह निर्णय लेना है कि 'मैं कृष्ण के बगैर ये नही करूंगा । मैं कृष्ण के बगैर ये नहीं करूंगा । जो व्यक्ति कृष्ण भावनाभावित नहीं है, मुझे उसके साथ मेलजोल नहीं रखना है । मुझे कृष्ण से असंबंधित विषयों पर बातचीत नहीं करनी है । मुझे कृष्ण के मन्दिर के अतिरिक्त और कहीं नहीं जाना है । मुझे कृष्ण संबंधित कार्यों के अतिरिक्त और किसी कार्य में हाथ नहीं डालना ।' इस प्रकार, यदि तुम स्वयं के कार्यो को प्रशिक्षित करो, तो तुम वास्तव में कृष्ण से प्रेम करते हो, इस प्रकार तुम कृष्ण को प्राप्त कर लेते हो - केवल तुम्हारी निष्ठा से । कृष्ण को तुम से कुछ नहीं चाहिए । वे तो बस केवल यह जानना चाहते हैं कि क्या तुमने उनसे प्रेम करने का निर्णय लिया है । बस इतना ही ।
|