HI/680825 बातचीत - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680825CM-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|"तो यह ब्रह्माण्ड, यह ब्रहांड तो एक ही ब्रह्माण्ड है, किन्तु लाखों ब्रह्माण्ड हैं, और वे स्थूल एवं सूक्ष्म तत्त्वों से आच्छादित हैं। और जब उन स्थूल एवं सूक्ष्म तत्त्वों का अतिक्रमण करके कोई आकाश तक पहुँचता है, वहां असंख्य नक्षत्र हैं।  नक्षत्र दीखते हैं, सूर्य और तारे, ऐसे। तो दो आत्मा, जय और विजय, वे इस धरती पर आ रहे हैं। यह इस चित्र में दिखाया है। अभी वे असुरों की भांति आये क्योंकि उनको परम भगवान् से लड़ाई करनी थी। भक्त (भगवान से) नहीं लड़ेंगे। भक्त सेवक हैं, किन्तु नास्तिक, असुर, वे सदैव भगवान से शत्रुता रखते हैं।"|Vanisource:680825 - Conversation - Montreal|680825 - बातचीत - मॉन्ट्रियल}}
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Latest revision as of 00:21, 5 January 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो यह ब्रह्माण्ड, यह ब्रहांड तो एक ही ब्रह्माण्ड है, किन्तु लाखों ब्रह्माण्ड हैं, और वे स्थूल एवं सूक्ष्म तत्त्वों से आच्छादित हैं। और जब उन स्थूल एवं सूक्ष्म तत्त्वों का अतिक्रमण करके कोई आकाश तक पहुँचता है, वहां असंख्य नक्षत्र हैं। नक्षत्र दीखते हैं, सूर्य और तारे, ऐसे। तो दो आत्मा, जय और विजय, वे इस धरती पर आ रहे हैं। यह इस चित्र में दिखाया है। अभी वे असुरों की भांति आये क्योंकि उनको परम भगवान् से लड़ाई करनी थी। भक्त (भगवान से) नहीं लड़ेंगे। भक्त सेवक हैं, किन्तु नास्तिक, असुर, वे सदैव भगवान से शत्रुता रखते हैं।"
680825 - बातचीत - मॉन्ट्रियल