हमारा कार्य प्रेम और भक्ति के साथ गोविंद, मूल व्यक्ति, की पूजा करना है । गोविंदम आदि-पुरूषं । यह कृष्ण भावनामृत है । हम लोगों को कृष्ण से प्रेम करना सिखा रहे है, बस । हमारा कार्य प्रेम करना है, और अपने प्रेम को उचित स्थान पर रखना है । यही हमारा कार्य है । हर कोई प्रेम करना चाहता है, लेकिन वह निराश हो रहा है क्योंकि वो अपने प्रेम को उचित स्थान पर नहीं लगा रहा है । लोग इसे नहीं समझते । उन्हे यह सिखाया जा रहा है कि, 'सबसे पहले तुम अपने शरीर से प्रेम करो' । फिर थोड़ा विस्तारित मे, 'तुम अपने पिता और माता को प्रेम करो' । फिर 'अपने भाई और बहन से प्रेम करो' । फिर ‘अपने समाज को प्रेम करो, अपने देश को प्रेम करो, पूरे मानव समाज से प्रेम करो, मानवता से' । लेकिन यह सब विस्तारित प्रेम, तथाकथित प्रेम, आपको संतुष्टि नहीं देंगे जब तक आप कृष्ण को प्रेम करने के इस बिंदु तक नहीं पहुंचते । तब ही आप संतुष्ट होंगे ।
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