HI/681009 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सिएटल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681009LE-SEATTLE_ND_01.mp3</mp3player>|अब कोई यह | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681009LE-SEATTLE_ND_01.mp3</mp3player>|अब कोई यह प्रश्न कर सकता है कि "हमें ईश्वर के विज्ञान को समझने में दिलचस्पी क्यों होनी चाहिए? इतनी सारी भौतिक चीज़ों के विज्ञान को समझने के लिए क्यों नहीं? यह क्यों होना चाहिए ...?" क्योंकि यह आवश्यकता है! यह वेदांत का सारांश है। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। यह एक अवसर है। जीवन का यह मानव रूप निरपेक्ष विज्ञान को समझने का अवसर है। या तो आप भगवान कहें या पूर्ण सत्य या फिर परमात्मा , एक ही बात है। परंतु मानव जीवन यह ही समझने के लिए है। यदि हम इस अवसर को गंवा देते हैं, तो हम नहीं जानते कि हम कहां जा रहे हैं।|Vanisource:681009 - Lecture - Seattle|681009 - प्रवचन - सिएटल}} |
Latest revision as of 03:58, 2 July 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
अब कोई यह प्रश्न कर सकता है कि "हमें ईश्वर के विज्ञान को समझने में दिलचस्पी क्यों होनी चाहिए? इतनी सारी भौतिक चीज़ों के विज्ञान को समझने के लिए क्यों नहीं? यह क्यों होना चाहिए ...?" क्योंकि यह आवश्यकता है! यह वेदांत का सारांश है। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। यह एक अवसर है। जीवन का यह मानव रूप निरपेक्ष विज्ञान को समझने का अवसर है। या तो आप भगवान कहें या पूर्ण सत्य या फिर परमात्मा , एक ही बात है। परंतु मानव जीवन यह ही समझने के लिए है। यदि हम इस अवसर को गंवा देते हैं, तो हम नहीं जानते कि हम कहां जा रहे हैं। |
681009 - प्रवचन - सिएटल |