HI/681109 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - लॉस एंजेलेस]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - लॉस एंजेलेस]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681109BS-LOS_ANGELES_ND_01.mp3</mp3player>|"सभी कुछ कृष्ण के आदेश से परिपूर्ण किया जा रहा है, क्योंकि प्रकृति कार्य कर रही है, कुदरत कार्य कर रही है।।। वह कैसे कार्य कर रही है? मयाध्यक्षेण ([[Vanisource:BG 9.10।भगवद्गीता ९.१०]])। मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते स चराचरम । " मेरे आदेश के तहत", कृष्ण कहते हैं । प्रकृति, कुदरत, बिना देखे कार्य नहीं कर रही है। तुम समझे? उसके स्वामी हैं, कृष्ण। तो इस जीवन का उद्देश्य है ब्रह्म जिज्ञासा, अनुसन्धान, "ब्रह्म क्या है ?" ब्रह्म के (बारे में)अनुसन्धान करने की जगह, वे ब्रह्म की हत्या करने का प्रयत्न कर रहे हैं। " कोई आत्मा नहीं है। कोई परमात्मा नहीं है। यह कुदरत है अपने आप से यह बनती जा रही है ।" ये बकवास चीज़ें ठूंसी जा रही हैं..., इस मनुष्य समाज के तुच्छ मस्तिष्क में ।"|Vanisource:681109 - Lecture BS - Los Angeles|681109 - प्रवचन BS - लॉस एंजेलेस}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/681108c प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|681108c|HI/681110 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|681110}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681109BS-LOS_ANGELES_ND_01.mp3</mp3player>|"सभी कुछ कृष्ण के आदेश से परिपूर्ण किया जा रहा है, क्योंकि प्रकृति कार्य कर रही है, कुदरत कार्य कर रही है।।। वह कैसे कार्य कर रही है? मयाध्यक्षेण ([[HI/BG 9.10|भगवद्गीता ९.१०]])। मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते स चराचरम । " मेरे आदेश के तहत", कृष्ण कहते हैं । प्रकृति, कुदरत, बिना देखे कार्य नहीं कर रही है। तुम समझे? उसके स्वामी हैं, कृष्ण। तो इस जीवन का उद्देश्य है ब्रह्म जिज्ञासा, अनुसन्धान, "ब्रह्म क्या है ?" ब्रह्म के (बारे में)अनुसन्धान करने की जगह, वे ब्रह्म की हत्या करने का प्रयत्न कर रहे हैं। " कोई आत्मा नहीं है। कोई परमात्मा नहीं है। यह कुदरत है अपने आप से यह बनती जा रही है ।" ये बकवास चीज़ें ठूंसी जा रही हैं..., इस मनुष्य समाज के तुच्छ मस्तिष्क में ।"|Vanisource:681109 - Lecture BS - Los Angeles|681109 - प्रवचन BS - लॉस एंजेलेस}}

Latest revision as of 17:36, 17 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"सभी कुछ कृष्ण के आदेश से परिपूर्ण किया जा रहा है, क्योंकि प्रकृति कार्य कर रही है, कुदरत कार्य कर रही है।।। वह कैसे कार्य कर रही है? मयाध्यक्षेण (भगवद्गीता ९.१०)। मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते स चराचरम । " मेरे आदेश के तहत", कृष्ण कहते हैं । प्रकृति, कुदरत, बिना देखे कार्य नहीं कर रही है। तुम समझे? उसके स्वामी हैं, कृष्ण। तो इस जीवन का उद्देश्य है ब्रह्म जिज्ञासा, अनुसन्धान, "ब्रह्म क्या है ?" ब्रह्म के (बारे में)अनुसन्धान करने की जगह, वे ब्रह्म की हत्या करने का प्रयत्न कर रहे हैं। " कोई आत्मा नहीं है। कोई परमात्मा नहीं है। यह कुदरत है अपने आप से यह बनती जा रही है ।" ये बकवास चीज़ें ठूंसी जा रही हैं..., इस मनुष्य समाज के तुच्छ मस्तिष्क में ।"
681109 - प्रवचन BS - लॉस एंजेलेस