HI/681127 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 05:10, 5 October 2021 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो जो व्यक्ति बुद्धिमान है, यदि वह समझ ले कि यह सांसारिक स्थिति केवल भ्रम है... सभी सोच विचार जो मैंने "मैं" और "मेरा" के आधार पर गढ़े हैं, यह सब भ्रम है। तो व्यक्ति, जब व्यक्ति भ्रम से निकलने के लिए समझदार होता है, वह आध्यात्मिक गुरु को समर्पण करता है। वही अर्जुन द्वारा प्रदर्शित हो रहा है। जब वह अत्यधिक भ्रांत है...वह कृष्ण से मित्र कि भांति बात कर रहा था, परन्तु उसने देखा कि "यह मैत्रीपूर्ण वार्तालाप मेरे प्रश्न को हल नहीं करेगा।" और उसने कृष्ण का वरण किया..क्योंकि उसे कृष्ण की गुणवत्ता मालूम थी। कम से कम उसे मालूम होनी चाहिए थी। वह (उनका) मित्र है। और उसको मालूम है कि कृष्ण (सर्व)मान्य हैं ।।। "यद्यपि वे मेरे मित्र की भांति व्यवहार कर रहे हैं, किन्तु महाजनों द्वारा कृष्ण परम पुरुषोत्तम भगवान स्वीकृत हैं।"
681127 - प्रवचन BG 02.08-12 - लॉस एंजेलेस