HI/681127b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९६८ Category:HI/अम...") |
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - update old navigation bars (prev/next) to reflect new neighboring items) |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - लॉस एंजेलेस]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - लॉस एंजेलेस]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681127BG-LOS_ANGELES_ND_02.mp3</mp3player>|"मृत शरीर, | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/681127 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|681127|HI/681129 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|681129}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/681127BG-LOS_ANGELES_ND_02.mp3</mp3player>|"मृत शरीर, मान लो जब शरीर मृत है, उसका कोई अर्थ नहीं है। दुखी होने से क्या लाभ है? तुम कई हज़ार साल शोक कर सकते हो, वह जीवित (अवस्था में) नहीं आएगा। इसलिये मृत शरीर पर शोक करने का कोई कारण नहीं है। और जहाँ तक आत्मा का सम्बन्ध है, वह सनातन है। भले ही वह मृत प्रतीत होता है, शरीर की मृत्यु के कारण, (वास्तव में) वह नहीं मरता। तो व्यक्ति को क्यों विह्वल होना चाहिए, " ओह, मेरे पिता मर गए हैं, मेरे अमुक अमुक परिजन मर गए हैं," और रुदन करना? वे नहीं मरे हैं। यह ज्ञान व्यक्ति के पास होना चाहिए। तब वह सभी अवस्थाओं में प्रसन्न रहेगा, और वह केवल कृष्ण भावना में अनुरक्त रहेगा। शरीर के लिए कुछ भी शोक करने योग्य नहीं है, जीवित या मृत। इस अध्याय में कृष्ण द्वारा यह शिक्षा दी जा रही है।"|Vanisource:681127 - Lecture BG 02.08-12 - Los Angeles|681127 - प्रवचन BG 02.08-12 - लॉस एंजेलेस}} |
Revision as of 00:49, 25 February 2020
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"मृत शरीर, मान लो जब शरीर मृत है, उसका कोई अर्थ नहीं है। दुखी होने से क्या लाभ है? तुम कई हज़ार साल शोक कर सकते हो, वह जीवित (अवस्था में) नहीं आएगा। इसलिये मृत शरीर पर शोक करने का कोई कारण नहीं है। और जहाँ तक आत्मा का सम्बन्ध है, वह सनातन है। भले ही वह मृत प्रतीत होता है, शरीर की मृत्यु के कारण, (वास्तव में) वह नहीं मरता। तो व्यक्ति को क्यों विह्वल होना चाहिए, " ओह, मेरे पिता मर गए हैं, मेरे अमुक अमुक परिजन मर गए हैं," और रुदन करना? वे नहीं मरे हैं। यह ज्ञान व्यक्ति के पास होना चाहिए। तब वह सभी अवस्थाओं में प्रसन्न रहेगा, और वह केवल कृष्ण भावना में अनुरक्त रहेगा। शरीर के लिए कुछ भी शोक करने योग्य नहीं है, जीवित या मृत। इस अध्याय में कृष्ण द्वारा यह शिक्षा दी जा रही है।" |
681127 - प्रवचन BG 02.08-12 - लॉस एंजेलेस |