HI/681129 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"जब तक व्यक्ति यह साधारण तथ्य नहीं समझता, कि आत्मा शरीर से भिन्न है, आत्मा शाश्वत है, शरीर अनित्य है, परिवर्तनशील...क्योंकि बिना यह समझे, वहां आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है। एक मिथ्या ज्ञान। जो व्यक्ति इस शरीर से तादात्मय करता है, उसको आध्यात्मिक ज्ञान की समझ नहीं है। तो योगी, वे इस ध्यान से इस स्तर पर आने का प्रयत्न कर रहे हैं,"कि मैं यह शरीर हूँ या नहीं। "ध्यान का यही अर्थ है। पहले ध्यान, मन का केन्द्रीकरण, विभिन्न प्रकार के आसन, वह मुझे मन को केंद्रित करने में सहायता करता है। और जो मैं मन को एकाग्र करता हूँ, ध्यान " क्या मैं यह शरीर हूँ?" |
6681129 - प्रवचन BG 02.13-17 - लॉस एंजेलेस |