HI/681223 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

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HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"ठीक एक नटखट बालक के समान। आप बलपूर्वक, एक बालक को शैतानी करने से रोक सकते हैं। परंतु जैसे ही उसे अवसर मिलता है, वह पुनः वैसे ही करेगा। ठीक उसी प्रकार, इन्द्रियां बहुत प्रबल हैं। आप उन्हें कृत्रिम रूप से नहीं रोक सकते। इसलिए कृष्ण भावनामृत ही एकमात्र उपाय है। कृष्ण भावनामृत में लगे यह युवक, यह भी इन्द्रियतृप्त हैं - सुन्दर प्रसादम पाना, नृत्य करना, भगवान का गुणगान करना, शास्त्र पढ़ना - किन्तु यह तृप्ति कृष्ण से संबंधित है। यह महत्वपूर्ण बात है। निर्बंधः कृष्ण-सम्बन्धे (भक्तिरसामृत सिंधु १.२.२५५)। यह कृष्ण की इन्द्रिय तुष्टि है, यद्यपि प्रत्यक्ष रूप से नहीं। परंतु चूँकि हम कृष्ण के अंश और भाग हैं इसलिए कृष्ण की सेवा से हमारी इन्द्रियां स्वतः संतुष्ट हो जाती हैं। हमें यह विधि अपनानी चाहिए भले ही कृत्रिम रूप से। यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन जीवन जीने की कला है जिसके द्वारा हम अनुभव करेंगे कि हमारी इन्द्रियां तृप्त हो गयी हैं, किन्तु हम अपने अगले जीवन में मुक्त हो जाएंगे। यह सुन्दर विधि है।"
681223 - प्रवचन BG 03.06-10 - लॉस एंजेलेस