HI/690112 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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Revision as of 04:34, 15 April 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हमारा पापमय जीवन मायने अज्ञानता, अज्ञानता के कारण (है)। ठीक जैसे यदि मैं इस लौ तो स्पर्श करूँ, यह जलायेगी। कोई व्यक्ति कह सकता है, "ओह तुम जले हो। तुम पापी हो।" यह साधारण समझ है। " तुम जले हो। तुम पापी हो, इसलिए तुम जले हो।" यानि, एक अर्थ (में), यह सही है। "मैं पापी हूँ" मायने मैं नहीं जानता कि यदि मैं इस लौ को स्पर्श करूँ, मैं जल जाऊँगा। यह अज्ञानता मेरा पाप है। पापमय जीवन मायने अज्ञानता का जीवन। अतः, इस चौंतीसवें श्लोक में, "मात्र सत्य को जानने का प्रयत्न करो। अज्ञानी मत रहो। आध्यात्मिक गुरु के संपर्क द्वारा मात्र सत्य को जानने का प्रयत्न करो।" यदि राह एवं जरिया है तो तुम्हें अज्ञानता में क्यों रहना चाहिए? वह मेरी मूर्खता है। इसलिए मैं कष्ट सहन कर रहा हूँ।"
690112 - प्रवचन BG 04.34-39 - लॉस एंजेलेस