HI/690305 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हवाई में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
(Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६९]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६९]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - हवाई]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - हवाई]]
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/690222 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690222|HI/690309 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हवाई में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|690309}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690305LE-HAWAII_ND_01.mp3</mp3player>|
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690305LE-HAWAII_ND_01.mp3</mp3player>|
"अब, मैं इस हाथ की भावना, स्पर्श भावना का आनंद लेने के लिए कुछ नरम जगह को छूना चाहता हूं। लेकिन अगर हाथ दस्ताने में है, तो मैं उस भावना का इतनी अच्छी तरह से आनंद नहीं ले सकता। आप आसानी से समझ सकते हैं। चेतना तो है, लेकिन अगर यह कृत्रिम रूप से किसी चीज़ से आवृत किया गया है, फिर सुविधा है फिर भी मैं इस चेतना का पूरी तरह से आनंद नहीं ले सकता हूं। इसी तरह, हमें अपनी इंद्रियां मिल गई हैं, लेकिन हमारी इंद्रियां अब इस भौतिक शरीर से आच्छादित हैं। कृष्ण हमें भगवद गीता में संकेत देते हैं कि, उस चेतना से श्रेष्ठ परमानन्द को प्राप्त किया जा सकता है, इस आच्छादित गौण आनंद को नहीं।”|Vanisource:690305 - Lecture - Day after Sri Gaura-Purnima - Hawaii|690305 - प्रवचन - श्री गौर-पूर्णिमा के बाद का दिन - हवाई}}
"अब, मैं इस हाथ की भावना, स्पर्श भावना का आनंद लेने के लिए कुछ नरम जगह को छूना चाहता हूं। लेकिन अगर हाथ दस्ताने में है, तो मैं उस भावना का इतनी अच्छी तरह से आनंद नहीं ले सकता। आप आसानी से समझ सकते हैं। चेतना तो है, लेकिन अगर यह कृत्रिम रूप से किसी चीज़ से आवृत किया गया है, फिर सुविधा है फिर भी मैं इस चेतना का पूरी तरह से आनंद नहीं ले सकता हूं। इसी तरह, हमें अपनी इंद्रियां मिल गई हैं, लेकिन हमारी इंद्रियां अब इस भौतिक शरीर से आच्छादित हैं। कृष्ण हमें भगवद गीता में संकेत देते हैं कि, उस चेतना से श्रेष्ठ परमानन्द को प्राप्त किया जा सकता है, इस आच्छादित गौण आनंद को नहीं।”|Vanisource:690305 - Lecture - Day after Sri Gaura-Purnima - Hawaii|690305 - प्रवचन - श्री गौर-पूर्णिमा के बाद का दिन - हवाई}}

Latest revision as of 23:14, 8 May 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी

"अब, मैं इस हाथ की भावना, स्पर्श भावना का आनंद लेने के लिए कुछ नरम जगह को छूना चाहता हूं। लेकिन अगर हाथ दस्ताने में है, तो मैं उस भावना का इतनी अच्छी तरह से आनंद नहीं ले सकता। आप आसानी से समझ सकते हैं। चेतना तो है, लेकिन अगर यह कृत्रिम रूप से किसी चीज़ से आवृत किया गया है, फिर सुविधा है फिर भी मैं इस चेतना का पूरी तरह से आनंद नहीं ले सकता हूं। इसी तरह, हमें अपनी इंद्रियां मिल गई हैं, लेकिन हमारी इंद्रियां अब इस भौतिक शरीर से आच्छादित हैं। कृष्ण हमें भगवद गीता में संकेत देते हैं कि, उस चेतना से श्रेष्ठ परमानन्द को प्राप्त किया जा सकता है, इस आच्छादित गौण आनंद को नहीं।”

690305 - प्रवचन - श्री गौर-पूर्णिमा के बाद का दिन - हवाई