HI/690309 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हवाई में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690309SB-HAWAII_ND_01.mp3</mp3player>|"प्रत्येक जीव स्वभाव से हर्षित, आध्यात्मिक है, और क्योंकि वह भौतिक रूप से आच्छादित है, उसकी खुशी में बाधा आ रही है। यह वास्तविक स्थिति है। बुखार की स्थिति, कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है, बुखार से हमला हो जाता है - उसकी खुशी दूर हो जाती है। वह बीमार है। इसी तरह , हमारी प्राकृतिक स्थिति आनंदमय है। आनंदमायो अभ्यासात। कृष्ण हमेशा हर्षित हैं। मैं कृष्ण का अविभाज्य हिस्सा हूं, इसलिए मुझे भी हर्षित होना चाहिए। यह स्वाभाविक है। यदि मेरे पिता काले हैं, तो मैं भी काला हूं। यदि मेरी मां काली है, तो मैं भी काला हूँ। उसी तरह हमारे पिता, परम पिता कृष्ण, आनंदित हैं और इसीलिए हम भी आनंद खोज रहे है।"|Vanisource:690309 - Lecture SB 07.09.08 - Hawaii|690309 - प्रवचन श्रीमद भागवतम ०७.०९.०८ - हवाई}}
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Latest revision as of 23:15, 8 May 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"प्रत्येक जीव स्वभाव से हर्षित, आध्यात्मिक है, और क्योंकि वह भौतिक रूप से आच्छादित है, उसकी खुशी में बाधा आ रही है। यह वास्तविक स्थिति है। बुखार की स्थिति, कोई व्यक्ति बीमार हो जाता है, बुखार से हमला हो जाता है - उसकी खुशी दूर हो जाती है। वह बीमार है। इसी तरह , हमारी प्राकृतिक स्थिति आनंदमय है। आनंदमायो अभ्यासात। कृष्ण हमेशा हर्षित हैं। मैं कृष्ण का अविभाज्य हिस्सा हूं, इसलिए मुझे भी हर्षित होना चाहिए। यह स्वाभाविक है। यदि मेरे पिता काले हैं, तो मैं भी काला हूं। यदि मेरी मां काली है, तो मैं भी काला हूँ। उसी तरह हमारे पिता, परम पिता कृष्ण, आनंदित हैं और इसीलिए हम भी आनंद खोज रहे है।"
690309 - प्रवचन श्रीमद भागवतम ०७.०९.०८ - हवाई