HI/690524 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यू वृन्दावन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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Revision as of 13:15, 1 February 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"तो एक भक्त के लिए, इन्द्रिय नियंत्रण आवश्यक नहीं है। वह स्वतः नियंत्रित हो जातीं हैं। ठीक जैसे हमने व्रत लिया है कि हम कृष्ण प्रसाद के अतिरिक्त कुछ नहीं खाएंगे। ओह, इन्द्रियां पहले ही नियंत्रित हैं। एक भक्त से पूछने का प्रश्न ही नहीं है, "तुम मद्यपान मत करो, ये मत करो, ये मत करो"। इतने सारे निषेध। केवल कृष्ण प्रसाद स्वीकार करने से, सारे निषेध, पहले से ही वहां हैं। और यह अत्यंत आसान हो जाता है। अन्य लोग, यदि किसी व्यक्ति से अनुरोध करें कि "तुम धूम्रपान मत करो", उसके लिए यह अत्यंत मुश्किल कार्य होगा। (किन्तु) भक्त के लिए, वह किसी भी क्षण त्याग सकता है। उसके लिए कोई समस्या नहीं है। अतः वही उदहारण, कि ये इन्द्रियां अत्यंत बलवान हैं निस्संदेह, सर्प के बराबर बलवान। किन्तु यदि तुम (उसके) विष दन्त तोड़ दो, विष दन्त, तब वह अधिक भयावह नहीं रहता। इसी प्रकार, यदि तुम अपनी इन्द्रियों को कृष्ण में नियुक्त करो, और अधिक नियंत्रण (आवश्यक) नहीं। वे (इन्द्रियां) पहले ही नियंत्रित होती हैं।"
690524 - प्रवचन SB 01.05.08-9 - New Vrindaban, USA