HI/690610 - मधुद्विष को लिखित पत्र, न्यू वृंदाबन, अमेरिका

Revision as of 07:11, 3 June 2022 by Dhriti (talk | contribs) (Created page with "Category:HI/1969 - श्रील प्रभुपाद के पत्र‎ Category:HI/1969 - श्रील प्रभुपाद के प्रवचन,...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
His Divine Grace A.C. Bhaktivedanta Swami Prabhupāda


जून १०, १९६९

मेरे प्रिय मधुद्विष,

कृपया मेरा आशीर्वाद स्वीकार करें। मैं आपके दिनांक जून ६, १९६९ के पत्रों की प्राप्ति की पावती देता हूं, और मैंने विषय को ध्यान से नोट कर लिया है। ब्रह्मचारी बने रहने का आपका संकल्प बहुत उत्साहजनक है। दरअसल, जीव को ज्यादा से ज्यादा उलझने की जरूरत नहीं है। बल्कि उसे अपना समय कृष्ण भावनामृत के व्यवसाय को समाप्त करने के लिए बचाना चाहिए, और इस प्रकार इस जीवन में मुक्त होना चाहिए। कामवासना हर जीव का एक लक्षण है, लेकिन श्रीमद्-भागवतम् में यह सलाह दी गई है कि यह खुजली की प्रवृत्ति की तरह कुछ है। यदि कोई इस खुजली को सहन कर ले तो वह इस खुजली के कारण होने वाले बड़े कष्टदायक व्यवसाय से खुद को बचा सकता है। अतः बुद्धिमान व्यक्ति खुजली को संतुष्ट करने के बाद के प्रभावों को स्वीकार करने के बजाय खुजली की अनुभूति का दर्द सहन करता है। भारत में, इसलिए, कई अखंड ब्रह्मचारी हैं, और मेरे गुरु महाराज सबसे अच्छे ब्रह्मचारी थे। तो आपका ब्रह्मचारी बने रहने का निर्णय बहुत ही गौरवशाली है, और यदि आप कृष्ण भावनामृत के सिद्धांतों का कठोरता से पालन करते हैं, तो आप कभी भी किसी कामवासना से परेशान नहीं होंगे, और पूरी तरह से कृष्ण भावनामृत में लगे रहकर जीवन बहुत सरल हो जाएगा।

बैंक ऑफ अमेरिका के माध्यम से भारत से आने वाले माल के संबंध में, मैं इसके साथ एक पत्र और $१०० का चेक संलग्न कर रहा हूं। मुझे आशा है कि इससे आपके प्रश्न का समाधान हो जाएगा। इस संलग्न पत्र के साथ आप आवश्यक कार्य कर सकते हैं।

आपके उत्साहवर्धक पत्र के लिए मैं एक बार फिर आपको धन्यवाद देता हूं। कृपया वहां के अन्य भक्तों को मेरा आशीर्वाद दें। मुझे आशा है कि आप अच्छे हैं।

आपका नित्य शुभचिंतक,
ए. सी. भक्तिवेदांत स्वामी