HI/690907 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद हैम्बर्ग में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 12:05, 1 February 2021 by Pathik (talk | contribs)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवद्गीता बताती है अंतिम पड़ाव पर, सर्व धर्मान परित्यज माम एकम शरणम व्रज (भगवद्गीता १८.६६) 'मेरे प्रिय अर्जुन...' वे अर्जुन को शिक्षा दे रहे हैं - केवल अर्जुन ही नहीं, बल्कि समस्त मानव समाज को - 'कि तुम अपने सरे बनावटी व्यावसायिक कर्तव्यों का त्याग कर दो। तुम बस मेरे प्रस्ताव को मान लो, और मैं तुम्हे संपूर्ण सुरक्षा दूंगा'। इसका (यह) अर्थ नहीं कि हम अपनी वैयक्तिकता गवाँ दें। ठीक जैसे कृष्ण अर्जुन से कहते है, 'तुम इसे करो', किन्तु वे उसे बाध्य नहीं करते, '(कि) तुम इसे करो'। 'यदि तुम चाहते हो, तो तुम इसे करो'। कृष्ण तुम्हारी स्वतंत्रता को नहीं स्पर्श करते। वे सिर्फ तुमसे अनुरोध करते हैं,'तुम इसे करो'। इसलिए यदि हम अपनी चेतना को कृष्ण भावना के साथ पूर्णतः संलग्न करें तो हम अपनी वैयक्तिकता बनाये रखते हुए भी सुखी और शांत हो सकते हैं।"
690907 - प्रवचन SB 07.09.19 - हैम्बर्ग