HI/700115b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 5: | Line 5: | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/700115 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|700115|HI/700117 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|700117}} | {{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/700115 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|700115|HI/700117 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|700117}} | ||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | <!-- END NAVIGATION BAR --> | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/700115SB-LOS_ANGELES_ND_02.mp3</mp3player>|"यहाँ यह कहा गया है कि एक व्यक्ति, यदि छोटी अवधि के लिए भी वह कृष्ण भावनामृत में सचेत हो जाता है, सकृत, मनः, यदि उसका मन किसी भी प्रकार से कृष्ण के कमल चरणों में स्थापित हो जाता है, तो, स्वप्न में भी वह कभी यमलोक का दंड क्या है नहीं देखेगा।" इसका अर्थ है कि एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति आश्वस्त है कि यमराज या उनके परिचारकों तथा उनके सुरक्षा बल द्वारा वह छुआ नहीं जा सकता है।"|Vanisource:700115 - Lecture SB 06.01.19 - Los Angeles|700115 - प्रवचन श्री.भा. 0६.0१.१९ - लॉस एंजेलेस}} | {{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/700115SB-LOS_ANGELES_ND_02.mp3</mp3player>|"यहाँ यह कहा गया है कि "एक व्यक्ति, यदि छोटी अवधि के लिए भी वह कृष्ण भावनामृत में सचेत हो जाता है, सकृत, मनः, यदि उसका मन किसी भी प्रकार से कृष्ण के कमल चरणों में स्थापित हो जाता है, तो, स्वप्न में भी वह कभी यमलोक का दंड क्या है नहीं देखेगा।" इसका अर्थ है कि एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति आश्वस्त है कि यमराज या उनके परिचारकों तथा उनके सुरक्षा बल द्वारा वह छुआ नहीं जा सकता है।"|Vanisource:700115 - Lecture SB 06.01.19 - Los Angeles|700115 - प्रवचन श्री.भा. 0६.0१.१९ - लॉस एंजेलेस}} |
Latest revision as of 14:29, 1 December 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"यहाँ यह कहा गया है कि "एक व्यक्ति, यदि छोटी अवधि के लिए भी वह कृष्ण भावनामृत में सचेत हो जाता है, सकृत, मनः, यदि उसका मन किसी भी प्रकार से कृष्ण के कमल चरणों में स्थापित हो जाता है, तो, स्वप्न में भी वह कभी यमलोक का दंड क्या है नहीं देखेगा।" इसका अर्थ है कि एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति आश्वस्त है कि यमराज या उनके परिचारकों तथा उनके सुरक्षा बल द्वारा वह छुआ नहीं जा सकता है।" |
700115 - प्रवचन श्री.भा. 0६.0१.१९ - लॉस एंजेलेस |