HI/700511 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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Latest revision as of 15:25, 3 January 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"किसी प्रकार, यदि हम कृष्ण भावनामृत को विकसित कर सकते हैं, तो शीघ्र ही हम शुद्ध हो जाते हैं। यह ही प्रक्रिया है। कृष्ण सभी को अवसर देते हैं। कंस के समान। कंस कृष्ण के बारे में सोच रहा था। वह भी कृष्ण भावनामृत था, सदैव कृष्ण के बारे में सोच रहा था, 'ओह, मैं कृष्ण को कैसे खोजूंगा? मैं उसे मार डालूंगा'। यह उसका सरोकार था। परंतु यह आसुरी मनोवृत्ति है। आसुरीं भावं आश्रिताः (भ.गी. ७.१५)। परंतु वह भी शुद्ध हो गया। उसे मोक्ष प्राप्त हुआ।"
700511 - प्रवचन इशो ०८ - लॉस एंजेलेस