HI/700622b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/700622IN-LOS_ANGELES_ND_02.mp3</mp3player>|"हृषीकेना-हृषिकेश-सेवनं (चै.च. मध्य १९.१७०] वास्तव में इंद्रियों के स्वामी कृष्ण हैं। हमारे पास यह हाथ है, परंतु यह हमें प्रदान किए गए हैं। वास्तव में यह हाथ कृष्ण के हैं। वह सर्वव्यापी हैं। सर्वतो 'पानि पादस तत:' हर स्थान पर कृष्ण व्याप्त हैं।' यह ज्ञान आप भगवद्गीता में पाएंगे (भ. गी. १९.१४]। इसलिए ये हाथ और पैर जो हमें मिलें हैं, यह कृष्ण के हाथ और पैर हैं। इसलिए जब ये कृष्ण के हाथ और पैर कृष्ण की सेवा में लगे रहेंगे, यही पूर्णता है। यही पूर्णता है। हम अपनी संतुष्टि के लिए अपनी इंद्रियों का उपयोग करना पसंद करते हैं,  परंतु वास्तव में यह इंद्रियां हमारी नहीं हैं, यह कृष्ण की हैं।"|Vanisource:700622 - Lecture Initiation - Los Angeles|700622 - प्रवचन दीक्षा - लॉस एंजेलेस}}
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Latest revision as of 14:17, 16 January 2023

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हृषीकेना-हृषिकेश-सेवनं (चै.च. मध्य १९.१७०) वास्तव में इंद्रियों के स्वामी कृष्ण हैं। हमारे पास यह हाथ है, परंतु यह हमें प्रदान किए गए हैं। वास्तव में यह हाथ कृष्ण के हैं। वह सर्वव्यापी हैं। सर्वतो 'पानि पादस तत:' हर स्थान पर कृष्ण व्याप्त हैं। यह ज्ञान आप भगवद्गीता में पाएंगे (भ. गी. १९.१४)। इसलिए ये हाथ और पैर जो हमें मिलें हैं, यह कृष्ण के हाथ और पैर हैं। इसलिए जब ये कृष्ण के हाथ और पैर कृष्ण की सेवा में लगे रहेंगे, यही पूर्णता है। यही पूर्णता है। हम अपनी संतुष्टि के लिए अपनी इंद्रियों का उपयोग करना पसंद करते हैं, परंतु वास्तव में यह इंद्रियां हमारी नहीं हैं, यह कृष्ण की हैं।"
700622 - प्रवचन दीक्षा - लॉस एंजेलेस