HI/701213 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद इंदौर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७०]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७०]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - इंदौर]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - इंदौर]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/701213SB-INDORE_ND_01.mp3</mp3player>|"हमने जो भी घृणित विशेषताएं विकसित की हैं, यदि हम इनका प्रतिकार करना चाहते हैं, तो हमें केवल भक्ति-योग की तरफ जाना होगा। अनर्थ। अनर्थ। हमने बहुत सारे अनर्थ विकसित किये है। हमें इनकी आवश्यकता नहीं है, लेकिन हमने इन लक्षणों को विकसित किया है। । इसलिए अनर्थ उपसमं। इसलिए यदि आप इन अनर्थो को काटना चाहते हैं, तो भक्ति-योगम अधोक्षजे- आपको भक्ति-योग सिद्धांत को स्वीकार करना होगा।"|Vanisource:701213 - Lecture SB 06.01.22-25 - Indore|701213 - प्रवचन श्री.भा.०६.०१.२२-२५ - इंदौर}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/701212 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद इंदौर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|701212|HI/701213b बातचीत - श्रील प्रभुपाद इंदौर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|701213b}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/701213SB-INDORE_ND_01.mp3</mp3player>|"हमने जो भी घृणित विशेषताएं विकसित की हैं, यदि हम उनका प्रतिकार करना चाहते हैं, तो हमें केवल भक्ति-योग की ओर जाना होगा। अनर्थ। हमने कई सारे अनर्थ विकसित किये है। हमें इनकी आवश्यकता नहीं है, परंतु हमने इन लक्षणों को विकसित किया है। । इसलिए अनर्थ उपसमं। इसलिए यदि आप इन अनर्थो को काटना चाहते हैं, तो भक्ति-योगम अधोक्षजे- आपको भक्ति-योग सिद्धांत को स्वीकार करना होगा।"|Vanisource:701213 - Lecture SB 06.01.22-25 - Indore|701213 - प्रवचन श्री.भा.०६.०१.२२-२५ - इंदौर}}

Revision as of 03:45, 29 September 2021

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"हमने जो भी घृणित विशेषताएं विकसित की हैं, यदि हम उनका प्रतिकार करना चाहते हैं, तो हमें केवल भक्ति-योग की ओर जाना होगा। अनर्थ। हमने कई सारे अनर्थ विकसित किये है। हमें इनकी आवश्यकता नहीं है, परंतु हमने इन लक्षणों को विकसित किया है। । इसलिए अनर्थ उपसमं। इसलिए यदि आप इन अनर्थो को काटना चाहते हैं, तो भक्ति-योगम अधोक्षजे- आपको भक्ति-योग सिद्धांत को स्वीकार करना होगा।"
701213 - प्रवचन श्री.भा.०६.०१.२२-२५ - इंदौर