HI/710103 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद सूरत में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 23:11, 12 July 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0025: NectarDropsConnector - add new navigation bars (prev/next))
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"चार प्रकार के व्यक्ति विष्णु की पूजा करने जाते हैं: आर्त; जो व्यथित हैं; अर्थार्थी, जिन्हें धन या भौतिक लाभ की आवश्यकता है; जिज्ञासु, जो जिज्ञासु हैं; और ज्ञानी-ये चार प्रकार। इनमें से, जिज्ञासु और ज्ञानी आर्त और अर्थार्थी से बेहतर हैं, व्यथित और धन की आवश्यकता। इसलिए ज्ञानी और जिज्ञासु भी, वे शुद्ध भक्ति सेवा में नहीं हैं, क्योंकि शुद्ध भक्ति सेवा ज्ञान से परे है। ज्ञाना-कर्मादि-अनावृतं (चै.च. मध्य १९.१६७)। गोपी की तरह, उन्होंने भी कृष्ण को ज्ञान के द्वारा समझने की कोशिश नहीं की, क्या कृष्ण भगवान् हैं। नहीं। वे केवल स्वतः ही विकसित-स्वचालित रूप से नहीं, अपनी पिछली अच्छे कर्मों के द्वारा-कृष्ण के लिए तीव्र प्रेम। उन्होंने कभी भी कृष्ण को समझने की कोशिश नहीं की, क्या वे ईश्वर हैं। जब उद्धव ने उनके आगे ज्ञान के बारे में प्रचार करने का प्रयास किया, तो उन्होंने इसे बहुत ध्यान से नहीं सुना। वे बस कृष्ण के विचार में लीन थे। यह कृष्ण भावनामृत की पूर्णता है।"
710103 - प्रवचन श्री.भा. ०६.०१.५६-६२ - सूरत