HI/710110 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद कलकत्ता में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
(Created page with "Category:HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी Category:HI/अमृत वाणी - १९७१ Category:HI/अ...") |
No edit summary |
||
Line 2: | Line 2: | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - १९७१]] | ||
[[Category:HI/अमृत वाणी - कलकत्ता]] | [[Category:HI/अमृत वाणी - कलकत्ता]] | ||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710110SB-CALCUTTA_ND_01.mp3</mp3player>|"भौतिक अस्तित्व का अर्थ होता है कामना वासना युक्त जीवन का | <!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE --> | ||
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/710105b बातचीत - श्रील प्रभुपाद बॉम्बे में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710105b|HI/710110b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद कलकत्ता में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|710110b}} | |||
<!-- END NAVIGATION BAR --> | |||
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/710110SB-CALCUTTA_ND_01.mp3</mp3player>|"भौतिक अस्तित्व का अर्थ होता है कामना वासना युक्त जीवन का आनंद लेना। कृष्ण-भुलिया जीव भोग वांछा करे (प्रेम- विवार्ता)। भौतिक जीवन का अर्थ केवल आनंद लेने की इच्छा करना है। निश्चित रूप से, यहाँ कोई आनंद नहीं है। इसलिए ... यदि कोई रास-लीला का श्रवण करता है, वह भी आधिकारिक स्रोत से, तो इसका परिणाम यह होगा कि व्यक्ति को कृष्ण के प्रति प्रेमपूर्ण सेवा के आध्यात्मिक मंच पर पदोन्नत किया जाएगा, तथा भौतिक रोग, वासना , इच्छाओं को मिटा दिया जाएगा। परंतु लोग आधिकारिक स्रोत से श्रवण नहीं करते हैं। वे पेशेवर वक्ताओं से सुनते हैं; इसलिए ऐसे लोग कामना वासना युक्त भौतिक अस्तित्व में रहते हैं, और कभी-कभी वे सहजिया बन जाते हैं। आप जानते हैं कि वृंदावन के युगल-भजन में एक व्यक्ति कृष्ण बन जाता है और एक राधा। यह ही उनका सिद्धांत है। और ऐसी बहुत सारी चीजें चल रही हैं। |Vanisource:710110 - Lecture SB 06.02.05-8 - Calcutta|वाणीसोर्स: ७१०११० - प्रवचन श्रीमद भागवतम ०६.०२.०५-८ - कलकत्ता}} |
Latest revision as of 03:53, 7 October 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"भौतिक अस्तित्व का अर्थ होता है कामना वासना युक्त जीवन का आनंद लेना। कृष्ण-भुलिया जीव भोग वांछा करे (प्रेम- विवार्ता)। भौतिक जीवन का अर्थ केवल आनंद लेने की इच्छा करना है। निश्चित रूप से, यहाँ कोई आनंद नहीं है। इसलिए ... यदि कोई रास-लीला का श्रवण करता है, वह भी आधिकारिक स्रोत से, तो इसका परिणाम यह होगा कि व्यक्ति को कृष्ण के प्रति प्रेमपूर्ण सेवा के आध्यात्मिक मंच पर पदोन्नत किया जाएगा, तथा भौतिक रोग, वासना , इच्छाओं को मिटा दिया जाएगा। परंतु लोग आधिकारिक स्रोत से श्रवण नहीं करते हैं। वे पेशेवर वक्ताओं से सुनते हैं; इसलिए ऐसे लोग कामना वासना युक्त भौतिक अस्तित्व में रहते हैं, और कभी-कभी वे सहजिया बन जाते हैं। आप जानते हैं कि वृंदावन के युगल-भजन में एक व्यक्ति कृष्ण बन जाता है और एक राधा। यह ही उनका सिद्धांत है। और ऐसी बहुत सारी चीजें चल रही हैं। |
वाणीसोर्स: ७१०११० - प्रवचन श्रीमद भागवतम ०६.०२.०५-८ - कलकत्ता |