HI/710212b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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Latest revision as of 00:36, 12 October 2021
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"कृष्ण को समझना बहुत सरल कार्य नहीं है। कृष्ण कहते हैं, "कई लाखों जीवों में से, कोई एक इस जीवन के मानव रूप में परिपूर्ण बनने का प्रयास कर रहा है।" हर कोई कोशिश नहीं कर रहा है। सबसे पहले व्यक्ति को ब्राह्मण बनना होगा या ब्राह्मणवादी योग्यता प्राप्त करनी होगी। यह सत्त्वगुण का उन्नत स्थान है। जब तक कोई सत्त्वगुण के उन्नत स्थान पर नहीं आता है, पूर्णता का कोई प्रश्न ही नहीं है। कोई भी नहीं समझ सकता है, कोई भी रजो गुण और तमो गुण के मंच पर पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता है, क्योंकि जो रजो गुण और तमो गुण के आदी है, वह सदैव अत्यधिक लालची एवं कामुक होते हैं। ततो रजस तमो भावाः कामा लोभादयस च ये (श्री.भा. १.२.१९)। जो राजसिक और तामसिक जैसे भौतिक गुणों से संक्रमित है, वह कामुक एवं लालची हैं। बस इतना ही।" |
710212 - प्रवचन चै.च. मद्य ६.१४९-५० - गोरखपुर |