HI/710212b प्रवचन - श्रील प्रभुपाद गोरखपुर में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"कृष्णा को समझना बहुत आसान काम नहीं है। कृष्ण कहते हैं, "कई लाखों जीवों में से, कोई एक इस जीवन के मानव रूप में परिपूर्ण बनने की कोशिश कर रहा है।" हर कोई कोशिश नहीं कर रहा है। सबसे पहले एक को ब्राह्मण बनना होगा या ब्राह्मणवादी योग्यता प्राप्त करना होगा। यह सत्त्वगुण का उन्नत स्थान है। जब तक कोई सत्त्वगुण के उन्नत स्थान पर नहीं आता है, पूर्णता का कोई सवाल ही नहीं है। कोई भी नहीं समझ सकता है, कोई भी रजो गुण और तमो गुण के मंच पर पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता है, क्योंकि जो रजो गुण और तमो गुण के आदी है, वह हमेशा बहुत लालची और कामुक होता है। ततो रजस तमो भावाः कामा लोभादयस च ये (श्री.भा. १.२.१९)। जो राजसिक और तामसिक जैसे भौतिक गुणों से संक्रमित है, वह कामुक और लालची है। बस इतना ही।"
710212 - प्रवचन CC Madhya 06.149-50 - गोरखपुर